तुलसीदास के दोहे | Tulsidas ke Dohe


‘रामचरितमानस ‘ के रचियता गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्य के महान कवि माने जाते है । उन्होंने देशवासियो को सकारात्मक सोच और एक नई दिशा दी । तुलसीदास के दोहे प्रेरणा के स्रोत है ,जो व्यक्तित्व के विकास में बहुत ही कल्याणकारी है ।


तुलसीदास
तुलसीदास

जीवन परिचय : 
जन्म : 1511 ईसवी सम्वत 1556 विo रामबोला
सोरो शूकर क्षेत्र ,कासगंज ,उत्तरप्रदेश ।
शिक्षक : नरहरिदास
साहित्यिक रचनायें : रामचरितमानस,दोहावली, कवितावली,कृष्णगीतावली, रामललाहछू, हनुमान चालीसा ,वैराग्य सन्दीपनी,जानकी मंगल,पार्वतीमंगल,विनयपत्रिका आदि ।
म्रत्यु : 1623 ईसवी संवत 1680 विo ।

तुलसीदास के दोहे :


1.

“नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु ।
जो सिमरत भयो भांग ते तुलसी तुलसीदास ।।”

अर्थ : राम का नाम आपकी कामना करने का नाम है .
कल्याण का निवास मुक्ति का द्वार है । उनको स्मरण करने से भांग से निकृष्ट तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गया है ।
2.

“मुखिया मुखु सो चाहिए खान-पान कहुँ एक ।
पालई-पोषई सकल अंग तुलसी सहित विवेक ।।”

अर्थ : तुलसीदास जी के अनुसार मुखिया मुख के समान होना चाहिए ।जो खाने पीने के लिए तो अकेला है लेकिन विवेक -पूर्ण हर अंगों का पालन पोषण करता है ।
3.

“तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुं ओर ।
वसीकरन इक मंत्र है परिहरु बचन कठोर ।।”
अर्थ : मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते है ।किसी को भी वश में करने का ये मंत्र होता है । इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह कठोर वचन छोड़कर मीठा बोलने का प्रयास करे ।
4.

“लसे पावस के समय , धरी कोकिलन मौन ।
अब तो दादुर बोलिह ,हमे पूछहिं कौन ।।”

अर्थ : बारिश के समय मे मेढकों के टर्राने की आवाज इतनी अधिक हो जाती है कि कोयल की मीठी आवाज उस कोलाहल में दब जाती है । इसलिए कोयल मौन धारण कर लेती है । अर्थात जब धूर्त और बड़बोले लोगों का वर्चस्व  होता है तो समझदार लोग चुप ही रहते है । वे व्यर्थ ही अपनी ऊर्जा व्यर्थ नही करते है ।

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5.
काम,क्रोध,मद, लोभ की ,जौ लौ मैन में खान ।
तौ लौ पण्डित मुरखौ ,तुलसी एक समाना ।।
अर्थ : जब एक व्यक्ति के मन मे काम ,क्रोध ,अहंकार और लालच से पूर्ण होगा । तब मूर्ख व्यक्ति और उसमें कोई अंतर नही होता । दोनो एक जैसे ही होते है ।

7.
सकल कामना हीन जे राम भगत रसलीन ।
नाम सुप्रेम पियुश हद तिन्हहु किये मनमीत।।
अर्थ : 
जो सभी इच्छाओं को छोड़कर रामभक्ति के रास में लीन होकर राम नाम प्रेम के सरोवर में अपने मन में मछली के रूप में रहते है । एक क्षण भी अलग नही रहना चाहते वही सच्चा भक्त है ।
8.
सुर समर करनी करहि कहि न जानवहि आपु ।
विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहि प्रतापु ।।

अर्थ : बहादुर व्यक्ति अपनी वीरता युद्ध के मैदान में शत्रु के सामने युद्ध लड़कर दिखाते है ।जबकि कायर व्यक्ति लड़कर नही बल्कि बातो से ही वीरता दिखाते है ।

9.
हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहि सुनहि बहु विधि सब संता ।
रामचन्द्र के चरित सुहाए ,कलप कोटि लगि जाहि ना गाये ।।
अर्थ :भगवान अनंत है और उनकी कथा भी अनंत है ।संत लोग उसे अनेक प्रकार से वर्णन करते है ।श्री राम के सुंदर चरित्र को करोड़ो युगों में भी नही गाये जा सकते ।
10.
“तुलसी देखि सुबेषु भूलहि मूढ़ न चतुर नर ।
सुंदर के केहि पेखु वचन सुधा सम असन अहि ।।”

अर्थ : सुदर वेष देखकर न केवल मूर्ख बल्कि चतुर मनुष्य भी धोखा खा जाते है । सुंदर मोर को ही देख लो उसका वचन तो अमृत के समान होता है लेकिन आहार साँप का होता है ।
11.
दया धर्म का मूल है ,पाप मूल अभिमान ।
तुलसी दया न छाड़िये ,जब लग घट में प्राण ।।

अर्थ : मनुष्य को दया कभी नही छोड़नी चाहिए ।क्योंकि दया ही धर्म का मूल है ।इसके विपरीत अहंकार सभी पापों की जड़ है ।
12.
“आवत ही हरषै नही ,नैनन नही सनेह ।
तुलसी तहाँ न जाइये कंचन बरसे मेह ।।”

अर्थ : जिस जगह आपके जाने से लोग खुश नही होते है जहां लोगो की आँखों मे आपके प्रति प्रेम और स्नेह न हो । वहां हमे कभी भी नही जाना चाहिए ।चाहे वहां धन की बारिश ही क्यों न हो रही हो ।
13.
“तुलसी साधी विपति के, विद्या विनय विवेक ।
साहस सुकृति सुसत्य व्रत ,राम भरोसे एक ।।”

अर्थ : किसी विपत्ति में आपको सात गुण बचाते है ।आपका ज्ञान या शिक्षा ,आपकी विनम्रता, आपकी बुद्धि,आपके भीतर साहस,आपके अच्छे कर्म,सच बोलने की आदत और ईश्वर में विश्वास ।
14.
“तुलसी भरोसे राम के,निर्भय होके सोय ।
अनहोनी होनी नही,होनी हो सो होए ।।”

अर्थ : ईश्वर पर भरोसा करिये और बिना किसी भय के चैन की नींद सोइए । कोई अनहोनी नही होने वाली कुछ खराब होना ही है तो होके रहेगा ।इसलिए व्यर्थ की चिंता छोड़कर अपना काने करिये ।
15.
“तुलसी इस संसार मे, भांति भांति के लोग ।
सबसे हँसि मिल बोलिये,नही नाव संजोग ।।”

अर्थ : इस दुनिया ने तरह तरह के लोग रहते है । हर तरह के स्वाभाव और व्यवहार वाले हर किसी से अच्छे से मिलिए और बात करिये । जिस प्रकार नाव नदी से मित्रता कर आसानी से उसे पर कर लेती है ।वैसे ही अपने अच्छे व्यवहार से आप भी  इस भवसागर को पार कर लेंगे ।
15.
“सुख हरसहि जड़ दुख बिलखानी, दोउ सम धीर धरहि मैन माही ।
धीरज धरहु विवेक विचारी ,छड़ी सोच सकल हितकारी ।।”

अर्थ : मूर्ख व्यक्ती दुख के समय रोते है । सुख के समय अत्यधिक खुश होते है । जबकि धर्यवान व्यक्ति दोनो ही समय समान रहते है । कठिन से कठिन समय मे भी अपने धैर्य को नही खोते और कठिनाइयों का डटकर मुकाबला  करते है ।

16.
राम नाम मनुदीप धरु, जीह देहरी द्वार ।
तुलसी भीतर चाहे रहुं जौ चाहिसि उजिआर ।।

अर्थ : जो व्यक्ति अंदर और बाहर दोनो ओर प्रकाश चाहते है ।उन्हें अपने द्वार अर्थात मुख और जीह्वा में प्रभु राम के नाम की मणि रखनी होगी और उनके नाम का दीपक जलाना होगा ।

17. 
“सचिव, वैद ,गुर तीनी जौ प्रिय बोलहि भय आस ।
राजधर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ।।”

अर्थ : मंत्री, वैध, गुरु ये तीनो डर या लोभ से हित की बात नही कह कर केवल  प्रिय बोलते है । तो राज्य, धर्म और शरीर तीनो का जल्दी ही विनाश हो जाता है। ।
18.
“सरनागत कहूँ जे तजहि निज अनहित अनुमानि ।
ते नर पावर पाप मय तिन्हहीं बिलोकत हानि ।।”

अर्थ : जो व्यक्ति अपने अहित का अनुमान करके शरण मे आये हुए का त्याग कर देते है वे क्षुद्र और पापमय होते है । उनके दर्शन करना भी उचित नही है ।
19. 
“आगे कह मृदु वचन बनाई ,पाछे अनहित मन कुटिलाई ।
जाकर चित अहिगत सम भाई ,अस कुमित्र परिहरेहि भलाई ।”
अर्थ : ऐसे मित्र जो आपके सामने बनाकर मीठा बोलते है और मन ही मन आपके लिए बुराई का भाव रखते है । जिसका मन साँप के चलने के समान टेढ़ा हो । ऐसे खराब मित्र को त्याग कर देने में ही भलाई है ।
20.
तात स्वर्ग अपवर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग ।
तूल न ताहि सकल मिली जो सुख लव सत्संग ।।

अर्थ: तुलसीदास जी के अनुसार यदि तराजू के एक पलड़े पर स्वर्ग के सभी सुख को रखा जाए तब भी वह एक क्षण केबराबर नहीं हो सकता।

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