भारत मे फाँसी कैसे दी जाती है : FANSI KAISE DI JATI HAI :


प्राचीनकाल में जघन्य अपराधियों को दंड देने के लिए मौत यानी फाँसी की सजा  सुनाई जाती थी । उसमे सामान्यतः गले में रस्सी के कसने के कारण हुई मौत को फाँसी कहा जाता है ।अंग्रेजों के समय मे कोड आफ क्रिमिनल प्रोसीजर CRPC,1898 मौत की सजा के लिए फांसी की सजा का प्रावधान है । इसके अनुसार जब किसी अपराधी को मौत की सजा सुनाई जाएगी उसे तब तक गर्दन से लटकाया जाएगा जबतक उसकी मौत न हो जाये ।आर्मी ,नेवी और एअरफ़ोर्स एक्ट में फांसी के अलावा गोली मारने के भी विकल्प है ।


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फाँसी के प्रकार :

फाँसी चार प्रकार से दी जाती है -1 शर्त ड्रॉप हैंगिग2.संस्प्रेशन हैंगिग 3.स्टैंडर्ड हैंगिग 4.लॉन्ग ड्राप हैंगिग ।
फांसी के लिए अब लॉन्ग ड्राप हैंगिग का इस्तेमाल किया जाता है । इसे 1872 में ब्रिटेन के विलियम मारवुड ने बनाया था । जिसमे अभियुक्त को इस तरह से लटकाया जाता है कि उसकी गर्दन टूट जाये ।उसको तबतक लटकाया जाता है । जबतक उसका दम न निकल जाए ।

फांसी किसको दी जाती है :

1983 में सुप्रीम कोर्ट ने ये निर्देश दिया कि सिर्फ ‘रेयरेस्ट आफ द रेयर ‘ केस में फांसी की सजा दी जाती है । केवल उन्हीं मामले में फांसी की सजा दी जाती है जो अपराध काफी क्रूर हो और घिनौने हो । जिसे मौत के अलावा सभी सजा छोटी लगे । जो लोगो के सामने एक सबक हो कि इस जैसा अपराध करने पर उसे फांसी की सजा मिलेगी ।
स्वतंत्र भारत मे सबसे पहले महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सजा दी गयी थी । इसी प्रकार निर्भया मर्डर और रेप केस में चार अभियुक्तो अक्षय, विनय,पवन और मुकेश को 20 मार्च 2020 को फांसी की सजा दी गयी।


फांसी के बचाव पक्ष के अनेक दांव-पेंच :

फांसी की सजा कोर्ट द्वारा सुना दिए जाने पर उससे बचने के कई उपाय अपराधी और उनके वकील अपने पक्ष में करने के लिए कई कानूनी दांव पेंच और हथकंडे अपनाते है । जिससे मुजरिम बच सके ।  नेशनल क्राइम रेकार्ड ब्यूरो  के अनुसार साल 2004 से 2013 के बीच भारत मे 1303 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई। इस दौरान केवल तीन लोगों को फांसी दी गयी । इससे पता चलता है कि हमारे देश की कानूनी प्रक्रिया कितनी लचर है।

सबसे पहले तो सेशन कोर्ट या सत्र न्यायालय फांसी की सजा सुनाता है  तो कोर्ट को यह बताना होता है कि ये केस रेयरेस्ट आफ द रेयरेस्ट क्यो है ? हाइकोर्ट चेक करता है कि ये सच है ? दोनों की सहमति  से सेशन कोर्ट फांसी की सजा सुनाता है । सेशन कोर्ट के फैसले के बाद दोषी के पास हाईकोर्ट में अपील करने का ऑप्शन होता है । हाईकोर्ट में जज फिर से सबूतों  देखता है । हाईकोर्ट यदि सजा को बनाये रखता है । तो मुजरिम को सुप्रीम कोर्ट में जाने का ऑप्शन होता है। यदि सुप्रीम कोर्ट भी  सजा को बरकरार रखता है तो दोषी के पास आखिरी उम्मीद मर्सी पिटीशन’ या दया याचिका ‘ होती है । ‘दया याचिका ‘राज्यपाल या राष्ट्रपति के पास भेजी जाती है । राष्ट्रपति ग्रह मंत्रालय की सलाह लेता है । इसके बाद मर्सी पिटीशन खारिज हो जाने के बाद अभ्युक्त को फांसी तय हो जाती है । इन सब प्रक्रिया में बहुत समय लग जाता है ।
‘दया याचिका’ खारिज हो जाने के बाद फांसी का फरमान कभी भी आ सकता है । इसे ब्लैक वारन्ट भी कहा जाता है । इसमें फांसी की डेट, समय और स्थान लिखा होता है । इसके आगे की कार्यवाही जेल के मैनुवल के अनुसार होती है ।डैथ वारन्ट के आने के बाद कैदी को बता दिया जाता है कि उन्हें फांसी होने वाली है । जेल सुपरिटेंडेंट  प्रशासन को इसकी जानकारी दे दी जाती है ।

फांसी की तैयारी :

यदि कैदी किसी ऐसी जेल में है ,जहाँ फांसी की सजा का इंतजाम नही है तो उसे दूसरी जेल में शिफ्ट किया जाता है । फांसी मिलने वाले कैदी को अन्य कैदियो से अलग रखा जाता है । दिन में दो बार कैदी की तलाशी ली जाती है । सुपरिटेंडेंट और डिप्टी सुपरिटेडेंट और मेडिकल आफिसर कैदी के खान पान की पूरी जांच करते है ताकि कैदी किसी भी तरीके से आत्महत्या न कर पाए ।

सामान्य परिस्थिति में फांसी की सूचना कैदी के परिवार को 10 से 15 दिन पहले दे दी जाती है । ताकि आख़िरी बार परिवार वाले कैदियों से मिल सके ।
फांसी देने के लिए जिस रस्सी का प्रयोग होता है उसे ‘मनीला रस्सी ‘कहा जाता है । यह बक्सर के सेंट्रल जेल में बनती है । यह रस्सी 20 फ़ीट लंबी होती है । इसके रेशे जे-34 और 172 धागों से निर्मित होते है। यह रस्सी 100 से 120 kg का भार उठा सकती है।  इसकी गांठ पर वैक्स लगाया जाता है । फांसी से एक हफ्ते पहले सुपरिटेंडेंट की मौजूदगी में इस रस्सी को चेक किया जाता है । चेक करने के बाद इसे सुरक्षित लॉकअप में रख दी जाती है। इसके साथ ही इसीतरह की दो रस्सियां  रखी जाती है ।

 फांसी की तारीख तय हो जाने के बाद रस्सी का ट्रायल किया जाता है। जल्लाद पवन के अनुसार , ‘जितने वजन के आदमी को फांसी देनी होती है उतने वजन की मिट्टी बोरे में भरी जाती है। फिर बोरे  ईंटो का गला कैदी के गर्दन की नाप के बराबर  बनाया जाता है।  इसके बाद बोरे को तख्ते पर रख दिया जाता है । बोरे में जो  गला जैसा बनाया जाता है ,उसमे रस्सी में डाल कर बोरे को फांसी के फंदे पर टाँग  दिया जाता है। इस सब के बाद जेल सुपरिटेंडेंट रुमाल से  इशारा करते है और हम लीवर या खटका खींच देते है। बोरा कुंए में लटक जाता है । यह टेस्टिंग इसलिए किया जाता है कि रस्सी टूट न जाये।’ अफजल की फांसी के ट्रायल के समय रस्सी 2 बार टूट गयी थी ।

फांसी का समय :

फांसी का टाइम महीनों के हिसाब से रखा जाता है। फाँसी का समय सुबह लगभग 6 बजे से 8 बजे के बीच ही रखा जाता है । इसके पीछे यह कारण बताया जाता है कि बाकी कैदी सो रहे होते है । कैदी को दिन भर इंतजार नही करना होता । फाँसी के कुछ मिनट पहले सुपरिटेंडेंट अपने गार्डो के साथ कैदी को लेकर फाँसी वाली जगह तक आते है । फांसी के वक्त जल्लाद के अतिरिक्त सुपरिटेंडेंट और डिप्टी सुपरिटेंडेंट फांसी के पहले मजिस्ट्रेट को सूचित करते है कि कैदियो की पहचान कर ली है । डेथ वारंट पर कैदियो का साइन भी लेना जरूरी होता है .फांसी से पूर्व कैदी से उसकी आखिरी इक्छा पूछी जाती है । इसमें कैदी की जायज इक्छा जैसे पसंद का खाना या परिवार  के किसी सदस्य से मिलना या कोई धार्मिक पुस्तक का पढ़ना आदि शामिल है।

जल्लाद का कार्य :

कैदी को फांसी देने के समय जल्लाद का कार्य बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है । जल्लाद काल के दूत के रूप में दिखाई देता है ।
जल्लाद कैदियों के मुंह पर काला कपड़ा डालता है । उसके गले का फंदा लगाता है । कैदी के  हाथ पीछे बाँध दिया जाता है । दोनों पैरों को भी बांध दिया जाता  है । जल्लाद मुजरिमो के कान में कहता है कि’ हिंदुओं को राम राम और मुस्लिमों को सलाम । मैं अपने फ़र्ज के आगे मजबूर हूँ. मैं आपके सत्य के राह पे चलने की कामना करते है ।’ इसके बाद जल्लाद सुप्रिडेन्डेन्ट के इशारे पर लीवर खींच लेता है । लॉन्ग ड्रॉप में कैदी के वजन के हिसाब से रस्सी की लंबाई फिक्स की जाती है । यह इसलिए किया जाता है कि झटके में गर्दन और रीढ़ की हड्डी टूट जाये । ऐसा माना जाता है कि लॉन्ग ड्राप वाला तरीका सबसे कम क्रूर होता है । फांसी देते वक्त जेल के सभी कार्य रुक जाते है ।
लीवर के खीचने के आधे घण्टे बाद लाश को फंदे से उतारा जाता है । उसे तभी उतारा जाता है जब उसकी मौत की पुष्टि मेडिकल आफिसर द्वारा हो जाती है । मजिस्ट्रेट ,सुप्रिडेन्डेन्ट और मेडिकल तीनों डेथ वारंट पर साइन करते है । इसे कोर्ट में जमा किया जाता है ।

फांसी के बाद लाश को उनके परिवार को सौप दिया जाता है । जिनके परिवार नही होते उनसे  पहले हीे पूछ लिया जाता है कि उनका संस्कार कैसे करना है ।

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