नोटबंदी और भारत NoteBandi Aur Bharat In Hindi


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देश मे भ्रष्टाचार और कालाधन , दीमक की तरह देश के विकास को चाट रहा है। इसके साथ ही पाकिस्तान द्वारा  जालीनोट आतंकवादियो को सप्लाई कर  एक विकराल समस्या उत्पन्न हो गयी है। RBI के मुताबिक भारत में लगभग 16000 खरब डालर मूल्य के रुपए असली है, इंडियन इन्टेलिजेन्स एजेंसीज के मुताबिक पाकिस्तान 15000 खरब डालर नकली भारतीय रूपया छाप कर भारत में सप्लाई करने के लिए तैयार बैठा हैं (पूरी तरह असली के समान, जिसे पहचान पाना असम्भव था)| अर्थात लगभग पूरे भारतीय रूपया के 98% नकली नोट भारतीय बाजार में आने को तैयार थे| अगर वे नोट बाजार में आ जाते तो अचानक मुद्रास्फीति कई  गुनी बढ़ जाती, महंगाई दो गुनी बढ़ जातीl


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हवाला का धन्धा इसी ब्लैक मनी  से ही चल रहा था।  इस ओर  सरकार ने  एक ऐतिहासिक कदम उठाया हैं. मोदी सरकार ने 8 नवंबर 2016 को 1000 और 500 के नोटों पर रोक लगा दिया।सरकार काले धन रोकने के सन्दर्भ ये एक शुरूआती कदम माना  जा सकता है।

नंदन नीलखेड़ी  के अनुसार ,’500 और 1000 के पुराने नोट के चलन को बंद करने से दिक्कत तो होनी ही थी. लेकिन यह वित्तीय समावेशन के लिहाज से बड़ा कदम है. इससे अर्थव्यवस्था में लोगों की भागीदारी बढ़ेगी. लेन-देन के डिजिटल होने से अल्पकालिक मंदी के लिए फायदेमंद होगा. और तकनीक को अपनाने से लंबी अवधि के फायदे मिलेंगे. भुगतान का एक तरीका होने से देश को बड़े पैमाने पर फायदा होगा।’
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भारत जैसे देश मे नोटबंदी का इम्प्लीमेंटेशन का ठीक प्रकार से ना हो पाना ही आम जनता की परेशानी का मुख्य कारण  है।बैंकों में पर्याप्त कैश नहीं है।  जगजाहिर है कि बैंकों के सामने आम जनता की लंबी कतारे द्रष्टिगत हैं। अधिकतर लोग दिनभर लाइनों मे  खड़े होने के उपरांत भी उनको कैश नहीं मिल पा  रहा है। सरकार ने पहले से कोई ऐसी रणनीति नहीं बनाई जिससे ए टी एम से भी पर्याप्त मात्रा में  कैश निकल सके। एटीएम पुराने नोटों के  आधार की टेकनीकी  पर कार्यरत है।   जबकि नये नोटों के  साइज  मे अंतर है। एटीएम को पुनःनिर्मित करने मे काफी वक़्त लगेगा ।


शहरों की अधिकांश जनता डेबिट कार्ड ,क्रेडिट कार्ड और पे टी ऍम का सहारा लेकर अपनी  जरूरतों को पूरा कर रहे  हैं। लेकिन भारत मे कुल आबादी का कितने प्रतिशत  लोग इनसे परिचित है, फिर सब्ज़ीवाले ,छोटे दुकानदार ,ऑटो चालक,मजदूरवर्ग ,रिक्शेवालो  को काफी  दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
अस्पतालों की जमीनी हकीकत यह  है कि मरीजों से पुराने नोट लिए ही नहीं जा रहे है फिर  उनका इलाज कैसे संम्भव है ?जिनके घरो  में शादीब्याह होना है ,सरकार ने बैंको से इन परिवारों के लिए ढाई लाख रुपए की राशि निकालने की घोषणा  तो कर दी  है, लेकिन वास्तविक स्थिति  कुछ और है।
आम जनता मे परेशानी  का कारण 500 का  नया नोट, 2000 के नोट के  बाद आना। कुछ लोगो को 2000 का नोट मिल तो  गया। लेकिन रोजमर्रा की जरूरतों मे खुले पैसे कहाँ  से लाये। 50 और 100 की नोट मार्केट मे बहुत  कम है।

अब तक इस संदर्भ मे  50 लोगो से ज्यादा लोगों   की मौत हो चुकी है, यदि इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो स्थिति और भी बिगड़ सकती है।

प्रताप भानु मेहता ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है,’देशभर में एक खास तरह का राष्ट्रवादी प्रोजेक्ट फैलाया जा रहा है, हर तरह के व्यक्तित्व को खांचों में बांटा जा रहा है.हर नागरिक को या तो देशभक्त या अपराधी के रूप में देखा जा रहा है. उनके व्यक्तिगत जीवन का इतिहास, उनके बैंक खाता कहां है, कितना कैश वे इस्तेमाल करते हैं या वे एटीएम से कितनी दूर रहते हैं, इस पूरी प्रक्रिया में इन सवालों को दरकिनार कर दिया गया है।’
सरकार को सबसे पहले तो शहरों और  ग्रामीण जनता को नेटबैंकिंग , मोबाइल बैंकिंग और प्लास्टिक कार्ड के बारे मे पूरी जानकारी देना होगा । यह इतना आसान  नहीं है, कई  ग्रामीण एरिया मे अभी भी बैंक सुविधा भी उपलब्ध नहीं है। फिर सबसे बड़ा सवाल डिजिटल सिक्यूरिटी का है।
काले धन को लेकर सरकार को अपनी ओर भी देखना होगा।  हालांकि सरक़ार ने अपने सभी सांसदो को  अपनी आय और सम्पत्ति का लेखा जोखा प्रस्तुत करने की घोषणा  की है।
सरकार को विरोधियों के भी सुझावों को भी सुनना चाहिये  और यदि वो  जनता के हित  मे हो तो  लागू करना चाहिये। सरकारी और विरोधी पक्ष  को  आपसी वैमनस्य को त्याग कर, जनता के साथ उनका तालमेल स्थापित करके ही देश का विकास संभव है।

 

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