रक्षाबंधन पर निबंध : ESSAY ON RAKSHABANDHAN IN HINDI


रक्षाबंधन पर निबंध:
रक्षाबंधन का त्यौहार सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है । यह त्यौहार मानव् जाति को प्रेम और मानवता की रक्षा का सन्देश देता है । यह समस्त भारत, नेपाल और मारीशस में मनाया जाता है। ।
मनाने का तरीका : रक्षाबंधन में राखी या सूत्र का बहुत महत्व है। इस दिन प्रातः काल से ही इसकी तैयारियां प्राम्भ हो जाती है। लड़कियां और महिलाये पूजा की थाली सजाती है। थाली में राखी के साथ रोली, हल्दी , चावल दीपक और मिठाई रखी जाती है । लड़के या पुरुष तैयार होकर पूजा के स्थान पर बैठते है । अपने अभीष्ठ देवता की पूजा की जाती है । इसके बाद रोली से टीका करके चावल को टीके पर लगाया जाता है और सिर पर छिड़का जाता है । साथ ही बहनो द्वारा भाई की आरती की जाती है । इसके बाद दाहिनी कलाई पर बहने राखी बांधती है। भाई बहन को गिफ्ट और रूपये देता है । इसके बाद घर के सभी सदस्य दोपहर के भोजन करते है । अन्य त्योहारो की तरह इसमें भी घर पर पकवान बनाया जाता है । अनुष्ठान होने तक कई महिलाये व्रत भी रखती है ।
धार्मिक महत्व :भारत में अलग अलग राज्यो में इस त्योहार को विभिन्न तरह से मनाया जाता है : इस अवसर पर अमरनाथ यात्रा गुरु पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर रक्षाबंधन में समाप्त होती है ।
कुछ स्थानों पर पुरोहित और पंडित यजमानों के घर जाकर उन्हें राखी बांधते है । वे पूजा- हवन करके घर परिवार की सुख संवृद्धि के लिए ईश्वर से कामना करते है। बदले में धन, भोजन और वस्त्र प्राप्त करते है । गुरु और शिष्य के बीच रक्षासूत्र का भी उल्लेख भी मिलता है । राष्ट्रीय स्वयं सेवक में पुरुष एक दूसरे को भगवा धागा बांधते है । जो भाई-चारे और रक्षा का प्रतीक है ।
राजस्थान में रामराखी केवल भगवान् को ही बांधी जाती है और चूड़ाराखी भाभियों की चूडियों में बांधी जाती है । तमिलनाडु केरल और महाराष्ट्र के ब्राह्मण इस पर्व को अवनि कहते है । इस दिन नदी के तट पर स्नान करने के बाद ऋषियों का तर्पण करके नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है । यह इस बात का प्रतीत है अपने पापो को त्याग कर संकल्प लिया जाता है। नए सिरे से जीवन प्रारम्भ करे। समस्त मानव के कल्याण पर अपना जीवन लगाया जाये ।
महाराष्ट्र मे यह नारियल पूर्णिमा के नाम से विख्यात है । इस दिन लोग नदी या समुद्र में अपने जनेऊ बदलते है । समुद्र में नारियल चढ़ा कर वरुण देवता की पूजा करते है ।
उत्तर भारत में रक्षाबंधन का पर्व बहन और भाई के प्रेम को दर्शाती है । रक्षा- सूत्र बहन के प्यार का प्रतीक है और भाई उसकी रक्षा का वचन देता है ।
पौराणिक महत्व :पुराणों और भागवतगीता में भी रक्षाबंधन का उल्लेख और प्रसंग मिलता है । पुराणों में रक्षाबंधन का उल्लेख सृष्टि की से रक्षा है। देव और दानव में युद्ध के दौरान जब दानव जीत की और बढ़ने लगे तो इन्द्र व्याकुल हो जाते है । इंद्र की पत्नी इंद्राणी को जब यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने रेशम का धागा मंत्रो की शक्ति से पवित्र करके अपने पति की कलाई में बांधा । उसी धागे की शक्ति से ही इन्द्र को विजय प्राप्त हुई । यह दिन भी श्रावण की पूर्णिमा थी । उसी दिन से यह धागा बांधने की प्रथा प्रारम्भ हो गयी । यह रेशम का धागा धन ,शक्ति और विजय का प्रतीक माना जाता है । आज भी प्रासंगिक है :
‘येन बढ़ो बलिराज दानवेन्द्रो महाबल ।
तेन त्वामपि बन्धामि रक्षे मा चल मा चल ।।’
अर्थात जिस सूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था । उसी सूत्र से मै तुझे बांधता हूँ ।हे रक्षे राखी ! तुम अडिग रहना ।आज भी किसी भी शुभ कार्य में जब हाथ में कलावा बांधते है तो इसी मन्त्र का उच्चारण करते है ।
श्रीभागवत में वामनावतार में भी रक्षाबंधन का एक उदाहरण मिलता है दानवीर राजा बलि ने यज्ञ और तपस्या द्वारा स्वर्ग पर राज करने का निर्णय लिया । इससे चिंतित होकर इन्द्र और अन्य देवता विष्णु जी की शरण में गए। तब भगवान् विष्णु जी ने वामन का अवतार लेकर ब्राम्हण का वेश धारण किया । राजा बलि से भिक्षा माँगने पहुंचे। उन्होंने तीन पग भूमि मांगी । राजा बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी । विष्णु जी ने तीन पग में आकाश, पाताल और और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया । इसके उपरांत बलि ने अपने भक्ति के द्वारा भगवान विष्णु को हमेशा अपने सम्मुख रहने का वचन ले लिया । उनके घर न लौटने पर लक्ष्मी जी परेशान हो गयी । नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन राजा बलि के पास गयी। उन्हें रक्षासूत्र बांध कर अपना भाई बनाया और अपने पति को साथ ले आयी ।
ऐतिहासिक महत्व : राजपूत जब भी लड़ाई पर जाते थे तो महिलाये उनको टीका और हाथों में रक्षासूत्र बांधती थी । उनका यह विश्वास था की यह रक्षासूत्र उन्हें विजय दिलाएगा ।
मेवाड़ की रानी कर्मवती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमले की पूर्व सूचना मिली । रानी उस समय लड़ने में असमर्थ थी । अतः उन्होंने मुग़ल शासक हुमायूँ को राखी भेज कर सहायता मांगी । मुसलमान होते हुए भी मुग़ल शासक हुमायूँ ने मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए रानी कर्मवती और उसके राज्य की रक्षा की ।
रक्षाबंधन पर साहित्य और फिल्में : इससे साहित्य और फिल्में भी अछूती नही है। हरिकृष्ण के ऐतिहासिक नाटक ‘रक्षाबंधन’ का 98वां संस्करण प्रकाशित हो चुका है। हिंदी कवियत्री महादेवी वर्मा और सूर्यकांत निराला का भाई बहन का प्यार सर्वविदित है।
सूरदास के पद में भी राखी का जिक्र प्रस्तुत है – ‘ राखी बाँधत जसोदा मैया । विविध सिंगार किये पटभूषण ,पुनि पुनि लेत बलैया ।।
हिंदी फिल्मो के गीत तो बहुत ही लोकप्रिय हुए है : ‘भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना ‘ या फिर ‘ बहना ने भाई की कलाई में प्यार बांधा है,’, जैसे गीत इन रिश्तो के साथ घुलमिल मिलकर इस त्यौहार के आकर्षण को और अधिक बढ़ा देते है ।
खुशनुमा माहौल : इस दिन बाजारों में एक माह पूर्व से ही रंग बिरँगी राखियां सज जाती है । मिठाइयों की दुकानों की शोभा तो देखते ही बनती है। जिनके भाई शहर के बाहर नौकरी करते है । जो अपनी बहन के पास नही जा पातेे है। बहने उनके लिए राखियाँ कोरियर से भेजती है । विशेष कर बच्चों में उत्साह तो देखते ही बनता है । नये वस्त्र और कलाइयों में राखियो के साथ , वे बहुत आकर्षक लगते है । घर परिवार का माहौल बहुत ही खुशनुमा हो जाता है ।
देश में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के आवास पर भी बच्चे और महिलाये उनको राखी बांधते है । बदले में वे राष्ट्र की सुरक्षा का संकल्प लेते है ।
आज इस त्यौहार की महत्ता और अधिक बढ़ जाती है कि किस तरह समाज में महिलाओं पर शोषण और अपराध बढ़ रहे है । ऐसे में भाई का यह कर्तव्य बनता है कि वह अपनी बहन की रक्षा करे, उनकी हर परेशानी और मुसीबत पर उनका साथ दे ।


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