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Essay on Dussehra in Hindi : दशहरा / विजयादशमी पर निबंध


दशहरा का त्यौहार अश्विन दशमी क्वार के महीनें की शुक्लपक्ष के दसवे दिन मनाया जाता है । वर्ष की तीन सर्वश्रेष्ठ तिथियों में से एक है । इस दिन शुभकार्य किये जाते है ।’दशहरा’ शब्द संस्कृत के संयोजन शब्द ‘ दश’ और ‘हरा ‘से लिया गया है । जिसका तात्पर्य दस सिर वाले रावण का राम के द्वारा सिर कटना अर्थात इस दिन भगवान् राम ने रावण का वध किया था । इसे विजयदशमी के रुप में भी मनाया जाता है ।
देवी दुर्गा ने इसी दिन महिसासुर को मारकर उसके अत्याचार और पापो का अंत किया था । इसलिए हम कह सकते है कि दशहरा का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की  जीत का पर्व है ।इसके ठीक 20 दिन के बाद दीवाली का त्यौहार मनाते है । जब श्री रामचन्द्र अयोध्या आये तभी उनके आने की ख़ुशी में दीपावली का त्यौहार मनाते है ।
मनाने का कारण ; मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम प्रतीक है । घर- परिवार की एकता के । अपने माता पिता की आदर और सेवा भाव ही उनकी प्रकृति थी । बचपन से ही अपने छोटे भाइयों के प्रति प्रेम भाव रखते थे। अपने भाइयो की ख़ुशी के लिए स्वयं खेल में हार जाते थे । जो आगे चल कर उनके छोटे भाई भरत ने भी एक मिसाल कायम की । राम चन्द्र को बनवास और उनको राजगद्दी मिलते हुए भी वे राज सिंघासन पर नही बैठे बल्कि श्री राम की खड़ाऊ को रखकर एक सेवक के रूप में कार्य किया । 14 साल बाद जब श्रीराम आये तो उन्हें बिना किसी मोह के राजकाज लौट दिया ।



दूसरी ओर लंका नरेश रावण का चरित्र हर प्रकार से पूर्ण होते हुये भी अहंकार के कारण उसके गुण अवगुण में परिवर्तित हो जाते है । रावण की बहन शूर्पणखा राम और लक्षमण के प्रति आसक्त हो जाती है । वह राम और लक्षमण के सामने विवाह का प्रस्ताव रखती है ।लेकिन दोनों भाई उसके प्रस्ताव को ठुकरा देते है । असफल होने पर शूर्पणखा हिंसा पर उतारू हो जाती है । लक्षमण द्वारा बेइज्जत होकर जब वह रावण के पास आती है । रावण क्रोध में आग बबूला हो जाता है । वह सीता का अपहरण कर लेता है । सीता को खोजते हुए राम को सुग्रीव, हनुमान ,जामवंत मिलते है । वानर सेना की मदद से युद्ध की तैयारियां शुरू कर दी जाती है । रावण को समझाने के लिए अंगद को दूत के रूप में रावण के पास लंका भेजा जाता है । लेकिन रावण नही मानता। अपने आप को वह विश्व का सबसे शक्तिशाली यौद्धा समझता है । युद्ध मे एक एक कर उसने अपने पुत्र ,भाई और सगे सम्बंधियों को खो दिया । अंत में श्रीराम के द्वारा उसका वध होता है ।
इसी के समानांतर जहाँ एक ओर सीता स्त्री त्याग की मूर्ति अपने पति और परिवार में सेवा भाव को ही अपना कर्तव्य समझती है तो दूसरी ओर माँ दुर्गा का रूप नारी शक्ति का के रूप में उभर कर सामने आता है । दुर्गा जी ने महिसासुर जैसे शक्तिशाली असुर का वध करके नारी शक्ति को उजागर किया । दुर्गा जी के नवो रूपों (शैल पुत्री,ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा , स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री ) का दर्शन इन दिनों किया जा सकता है ।
मनाने का तरीका : यह त्यौहार दस दिन पहले से आरम्भ हो जाता है । जगह -जगह रामलीलाएं शुरू हो जाती है । हर दिन रामायण की कथा का मंचन होता है । लोग बहुत ही उत्साह से रामलीला देखते है ।दशहरे का त्यौहार थोड़ी बहुत विभिन्नता लिए हुए यह पूरे भारत में मनाया जाता है ।
दिल्ली में रामलीला मैदान में राम की कथा पर आधारित रामलीला बहुत ही आकर्षक होती है । बड़ी संख्या में लोग एकत्रित होकर भक्तिमय भाव से रामलीला को देखते है ।
इलाहाबाद का दशहरा अपनी झांकियो के लिए जाना जाता है । रात्रि में रोशनी के बीच इनकी शोभा देखते ही बनती है । भक्तिमय वातावरण के बीच सभी इसका आनंद लेते है। दसवे दिन रावण दहन के साथ ही यह त्यौहार पूर्णता प्राप्त करता है ।
बंगाल की दुर्गापूजा का अपना एक अलग ही महत्व है ।दुर्गा पूजा के बड़े और आकर्षक पंडाल शायद ही कही लगते होंगे । सुबह से ही सुगंधमयी वातावरण हो जाता है । दुर्गा जी के नवो रूपों को हर दिन बहुत ही सुंदरता से सजाया जाता है । उनकी पूजा स्तुति की जाती है । शाम को आरती, बहुत ही रोमांचकारी होती है । दुर्गा पूजा का विसर्जन भी बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। नदियों के किनारे मेला लगता है। बड़ी संख्या में लोग विसर्जन के आयोजन में आते है।
हिमाचल में कुल्लू का दशहरा : सभी लोग स्त्री, पुरुष बच्चे और बुज़ुर्ग वाद्य यंत्र बजाते है । जैसे ढोल ,तुरही नगाड़े और बासुरी आदि । अपने कुल देवताओँ और रघुनाथ की पूजा करते है । झांकिया भी निकालते है ।



बस्तर में अलग माँ दंतेश्वरी की आराधना करके मनाया जाता है । यह दुर्गा शक्ति का ही रूप माना जाता है ।यहां दशहरा 75 दिनों तक चलता है ।
तमिलनाडु , आंध्रप्रदेश और कर्नाटक में दशहरा नौ दिन चलता है । शुरू के तीन दिन लक्चमी सम्पन्नता का प्रतीक अगले तीन दिन सरस्वती कला और विद्या और अंतिम तीन दिन दुर्गा शक्ति की स्तुति की जाती है । मैसूर के दशहरे में हाथियों के जलूस निकलता है । दीपो के माध्यम से दशहरा मनाया जाता है ।यहाँ का दशहरा अपने शाही अंदाज के लिए प्रसिद्ध है ।
गुजरात में महिलाएं डांडिया करती है । यहाँ डांडियां रास का आयोजन किया जाता है । हर साल बड़े-बड़े सेलिब्रेटीज यहाँ आते है ।
कश्मीर में हिन्दू नौ दिन व्रत रखते है ।सिर्फ पानी पीते है । माता खीर भवानी के दर्शन करने जाते है ।यह एक झील के बीच में है । ऐसा कहा जाता है कि कोई अनहोनी होती है तो यहाँ का पानी काला हो जाता है ।
ऐतिहासिक महत्व : श्री राम ने नवरात्रिके दिन चंडीपूजा के रूप में दुर्गा देवी का पूजन किया । माँ दुर्गा ने श्री राम को विजय का आशीर्वाद दिया ।अगले ही दिन दशमी को रावण का वध हुआ । यह दिन विजयदशमी के रूप में मनाते है । शिवाजी ने औरंगजेब से इसी दिन युद्ध किया था और विजय प्राप्त की थी । बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने 5 लाख लोगो के साथ 14 अक्टूबर 1956 इसी दिन बौद्ध धर्म स्वीकार किया था । तीसरी ईसापूर्व सम्राट अशोक ने भी इसी दिन बौद्ध धर्म अपनाया था । इस दिन को धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस के नाम से भी जाना जाता है । द्वापर युग में इसी दिन महाभारत का युद्ध भी आरम्भ हुआ था । इस दिन शस्त्रो की पूजा भी होती है ।
सन्देश : यह त्यौहार हमे बुराइयों पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है । आज रावण ,कुंभकर्ण और मेघनाथ को बुराइयों के प्रतीक रूप में उनके पुतले जलाते है । खुशियां मनाते है । लेकिन क्या हम भ्रष्टाचाऱ और अहंकार रूपी राक्षस  को अपने अंदर से ख़त्म कर पाए । ऐसी बुराइयों को दूर करके ही हम सही अर्थो में यह पर्व मना सकते है ।

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