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Tenali Raman Ki Kahani In Hindi : तेनालीराम की कहानियाँ :


तेनालीराम की कहानियाँ :
तेनालीराम आंध्रप्रदेश के एक प्रसिद्ध कवि थे । अपनी कुशाग्र बुद्धि और हास्य बोध के कारण वे बहुत प्रसिद्ध हुए । वे  विजयनगर साम्राज्य (1509-1529) के राजा कृष्णदेव राय के अष्टदिग्गजों में से एक थे ।


तेनालीराम का जन्म 16 वी शताब्दी के प्रारम्भ में  थु नूलुरु नामक गाँव में तेलगु ब्राहमण परिवार में हुआ था ।उनके पिता गरालपति रामैया तेनाली नगर के राम लिंगेश्वर स्वामी मंदिर में पुरोहित थे । तेनालीराम के पिता की मृत्यु उनके बाल्यावस्था में ही हो गयी थी । इसके पश्चात इनकी माँ अपने भाई के पास चली गयी । वही पर तेनालीराम की परवरिश हुयी । एक मान्यता के अनुसार उन्हें माँ काली का आशीर्वाद प्राप्त था ।
उनकी पत्नी का नाम शारदा और बेटे का नाम भास्कर था । तेनालीराम के प्रिय मित्र गुंडपा थे ।

तेनालीराम पर अबतक अनेक कथाएँ ,टीवी धारावाहिक सीरियल बने है । जिसमे इन्होंने राजा कृष्णदेव के दरबार में हास्य व्यंग्य से राजा और दरबारियों का मनोरंजन किया । राजा कृष्णदेव राय जब भी मुसीबत में होते  तेनालीराम अपनी कुशाग्र बुद्धि से उसका हल निकाल लेते । 1990 में ‘तेनालीरामा ‘दूरदर्शन में टीवी धारावाहिक प्रसारित हुआ । जिसमे विजय कश्यप ने मुख़्य भूमिका थी । ‘द एडवेंचर्स आफ तेनालीरामा’  एनिमेशन धारावाहिक (2003) काफी प्रसिद्ध रहा।
तेनालीरामन 2014 में तमिल फिल्म में वादिवेलु  ने तेनालीराम और कृष्णदेव राय की भूमिका निभायी ।


तेनालीराम की कहानियाँ :
अपमान का बदला : यह बात इन दिनों की है जब तेनालीराम विजयनगर साम्राज्य में दरबारी कवि नही थे। वे संघर्ष कर रहे थे । वे अपने महाराजा के पास जाना चाहते ।उनसे मिलना चाहते थे । लेकिन उन तक कैसे पहुँचा  जाये । इसके लिए उन्होंने राज पुरोहित से बात की । लेकिन राजगुरु आज कल पर टाल दिया करते । दरअसल वे उनको मिलवाना ही नही चाहते थे । तेनालीराम ने भी ठान ली की राजपुरोहित को सबक सिखा कर ही दम लूंगा ।

एक दिन सुबह सुबह राज गुरु नदी में नहाने के लिए गए ।तेनालीराम भी उनके पीछे चल दिए । जैसे ही राजगुरु ने नदी में नहाने के लिए डुपकी लगाई ।इधर तेनालीराम ने राजगुरु के कपड़े उठा लिए और पेड़ के पीछे चुप गए । कुछ देर बाद राजगुरु नहाने के बाद नदी के किनारे बढ़े तो वही ठिठक गए ।क्योकि कपड़े वहाँ से नदारत थे । कपड़े वहां पर न देखकर वह चिल्लाया  : ‘मेरे वस्त्र किसने उठाये ।’ ओह ! रामलिंग (असली नाम ) मैंने तुम्हे देख लिया है । ‘अरे मजाक छोड़ो और मेरे वस्त्र मुझे वापस कर दो ।’ मै तुम्हे महाराज  से अवश्य मिलवाऊंगा ।

“तुम बहुत झूठे हो इतने दिनों से तुम मुझे झूठे दिलासे देते आये हो “

“नही मुझ पर  विश्वास करो मै तुम्हे राजा से अवश्य मिलवाऊंगा । मेरे कपड़े मुझे वापस करो ।” जिससे मै पानी से बाहर निकलूँ ।”
” तुम वादा करो कि मुझे अपने कंधे पर बैठा कर इसी समय राजमहल चलोगे । “राजगुरु क्रोधित हो उठा : ” तुम पागल तो नही हो गए” ”
“हाँ तुम्हारे झूठे आश्वासन से मैें पागल जो गया हूँ । बोलो मेरी शर्त मंजूर है तो बोलो नही तो मै चला ।”
“अरे भाई तुम्हारी हर शर्त मै मानने को तैयार हूँ । मुझे मेरे वस्त्र वापस कर दो ।”
तेनालीराम ने उसके वस्त्र दे दिए । राजगुरु ने बाहर आकर जल्दी- जल्दी वस्त्र पहने ,फिर उसे कंधे पर बैठा कर राजमहल की और चल दिया ।
जब राजगुरु नगर में पहुँचा तो यह विचित्र दृश्य देखकर  नगरवासी हैरान रह गए । लोग राजगुरु का मजाक बना रहे थे । लड़के पीछे से सीटियां बजा रहे थे। राजगुरु अपने आपको बहुत अपमानित महसूस कर रहे थे । 
महाराज ने जब राजगुरु का ऐसा अपमान देखा तो अत्यधिक क्रोधित हुए । उन्होंने अपने अंगरक्षको को आदेश दिया कि जो व्यक्ति कंधे पर बैठा है । उसे नीचे गिरा दो और उसकी खूब पिटाई करो । दूसरे व्यक्ति को सम्मानपूर्वक वापस ले आओ ।
राजगुरु तो महाराज को नही देख पाया। लेकिन तेनालीराम ने देख लिया कि महाराज उसकी ओर इशारा करके कुछ आदेश दे रहे है । तेनालीराम को समझते देर न लगी । महाराज क्या इशारा कर रहे है । तेनालीराम  राजगुरु के कंधे से तुरंत उतरा और क्षमा मांगने लगा । क्षमा मांगकर उसने चालाकी से राजगुरु को अपने कंधे पर उठा लिया और उनकी जय- जयकार करने लगा । तभी वहां राजा के अंगरक्षक आये और राजगुरु को कंधे से गिराकर उसकी खूब पिटाई कर दी । तेनालीराम  को सम्मानपूर्वक महाराज के पास ले गए । राजगुरु यह सब देखकर हैरान रह गए ।
अंगरक्षक तेनालीराम को लेकर महाराज के पास पहुँचे तो महाराज भी चौक गए । महाराज समझ गए की यह व्यक्ति बहुत ही चालक है । इसने पहले ही ये अंदाजा लगा लिया कि आगे क्या हो सकता है ।

उन्होंने आदेश दिया कि इसे ले जाओ और मौत के घाट उतार दो । इसने राजगुरु  का अपमान किया है । इसके खून से सनी तलवार सरदार को दिखा देना ।

कुछ दरबारी राजगुरु से असंतुष्ट थे । जब दरबारियों ने तेनालीराम से बात की तो उन्हें तेनालीराम निर्दोष लगा । अतः उन्होंने तेनालीराम से दस दस मुद्राए  सैनिको को दिलवाकर तेनालीराम से कहा कि वह शहर छोड़कर चला जाये । इसके बाद सिपाहियों ने बकरे को हलाल कर उसका खून से रंगी तलवार सरदार को दिखा दिया ।

तेनालीराम को जहां जान बचने की ख़ुशी थी वही बीस स्वर्ण मुद्राओ के जाने का दुःख भी था ।
तेनालीराम ऐसे में कहा चुप बैठने वाला । उसने अपनी माँ और पत्नी को सिखा पढ़ा कर दूसरे दिन महल भेज
दिया ।
महाराज के पास जाकर सास और बहू जोर- जोर से रोने का नाटक करने लगी । महाराज एक छोटे से अपराध की इतनी बड़ी सजा । आपने मेरे बेटे को मृत्यु दंड दे दिया । उसके इस दुनिया से चले जाने के बाद ‘अब कौन मेरे  बुढ़ापे का सहारा बनेगा । मेरा परिवार अब कैसे चलेगा । मैं अब  किसके सहारे जीऊँगी ।’ यह कह कर वो फिर से रोने लगी । महाराज को अपनी गलती का अहसास हुआ । उन्होंने आज्ञा दी कि इन्हें हर माह दस स्वर्ण मुद्राये दी जाये । जिससे ये अपना व अपने परिवार का पेट पाल सके । जब दस स्वर्ण मुद्राये लेकर दोनों सास -बहू घर लौटी तो तेनालीराम को पूरी बात बताई । तेनाली राम मुस्कुराया और उसने कहा, ‘चलो दस स्वर्ण मुद्राये अगले माह मिल जायेगी हिसाब बराबर हो जायेगा ।’

तेनालीराम और कुँए का विवाह :
-एक बार राजा कृष्णदेव और तेनालीराम का किसी बात को लेकर विवाद हो गया | तेनालीराम रूठ कर चले गये | आठ दस दिन बीते तो राजा का मन उदास हो गया | राजा ने तुरंत तेनालीराम को खोजने के लिए अपने सैनिको को भेजा | आसपास का पूरा क्षेत्र छान मारा पर तेनालीराम का कुछ  पता नहीं चला । अचानक राजा को एक तरकीब सूझी । उन्होंने आस -पास के इलाकों में मुनादी करवाई | राजा अपने राजकीय कुँए का विवाह रचा रहे है | इसलिए आस पास के गाँव के सभी मुखिया अपने अपने कुओं को लेकर राजमहल पहुंचे अन्यथा सभी मुखियो को एक एक हजार स्वर्ण मुद्रा जुर्माने के तौर पर अदा करने होंगे ।

तेनाली राम जिस गाँव में भेष बदल कर रहता था । उस गाँव में भी ये मुनादी सुनाई दी । गाँव का मुखिया और अन्य गांवों के भी मुखिया बड़े परेशान थे । सोच रहे थे अब किया क्या जाय ?क्योंकि कुओ को राजमहल केसे ले जाया जा सकता है | तेनालीराम समझ गए थे कि मुझे खोजने के लिए राजा ने ये तरकीब लगायी है । तेनालीराम ने गाँव के मुखिया को बुलाकर कहा आप चिंता न करें । आपने मुझे इस गाँव में रहने के लिए जगह दी है । इसलिए मैं आपकी मदद  कर सकता हूँ । आप सब गांवों के मुखिया को बुला लाये और जैसा मै कहू वैसा ही करो ।

तेनालीराम के साथ गाँव के मुखियाओं ने राजधानी की ओर प्रस्थान किया । राजधानी के बाहर एक जगह वो रुक गये । तेनालीराम के अनुसार एक मुखिया राजा के महल में सन्देश लेकर गया और बोला “महाराज आपके बताये अनुसार हमारे गाँव के कुँए राजधानी के बाहर डेरा डाले हुए है ।” आप अपने राजकीय कुँए को उनकी अगवानी के लिए भेजें । जिससे हमारे कुँए आपके दरबार में सम्मानपूर्वक हाजिर हो सकें |
राजा को समझते देर नहीं लगी और महाराज ने मुखिया से पूछा कि “सच -सच बताओ ,यह तरकीब तुम लोगो को किसने दी । “आगन्तुक ने जवाब दिया,” थोड़े दिन पहले हमारे गाँव में एक परदेसी आकर रुका था । उसी ने ये तरकीब दी है ।” राजा रथ पर बैठकर उसी समय उस स्थान पर पहुंचे और तेनालीराम को ससम्मान वापिस लेकर आये । गाँव वालों को उपहार देकर विदा किया ।
एक बार की बात है, राजा कृष्ण देव राय की बहुत ही कीमती अंगूठी चोरी हो गयी । राजा बहुत ही दुखी हो गये की । क्योकि उस अँगूठी को वे बहुत पसंद करते थे । तेनालीराम को जब यह पता चला तो उन्होंने राजा से पूछा कि आपको किस पर शक है । राजा ने अपने 12 अंगरक्षकों  पर शक जताया । लेकिन उनमे से किसी एक का पता कैसे लगया जाये ?
तेनालीराम ने राजा को आश्वासन दिया कि” मै अंगूठी चोर को बहुत जल्द पकड़ लूंगा । आप चिंता न करे ।”
तेनालीराम ने राजा के अंगरक्षकों को बुलाकर उनसे कहा, “राजा की अंगूठी आपमें से किसी एक ने चुराई है, लेकिन मैं इसका पता बड़ी आसानी से लगा लूंगा। चोर को कड़ी सज़ा मिलकर रहेगी । जो सच्चा है उसे डरने की कोई ज़रुरत नहीं । आप सब मेरे साथ काली मां के मंदिर चलो।”
राजा आश्चर्य में पड़ गए कि चोर को पकड़ने के लिए भला मंदिर क्यों जाना है ?
मंदिर पहुंचकर तेनालीराम पुजारी के पास गए और उन्हें कुछ निर्देश दिए । इसके बाद उन्होंने अंगरक्षकों से कहा, “आप सबको बारी-बारी से मंदिर में जाकर मां काली की मूर्ति के पैर छूने हैं और फ़ौरन बाहर निकल आना है । ऐसा करने से मां काली आज रात स्वप्न में मुझे उस चोर का नाम बता देंगी ।

सारे अंगरक्षक बारी-बारी से मंदिर में जाकर माता के पैर छूने लगे । जैसे ही कोई अंगरक्षक पैर छूकर बाहर निकलता तेनालीराम उसका हाथ सूंघता और एक कतार में खड़ा कर देता । कुछ ही देर में सभी अंगरक्षक एक कतार में खड़े हो गए ।
महाराज बोले, “चोर का पता कब लगेगा?
“नहीं महाराज, चोर का पता तो लग चुका है। सातवें स्थान पर खड़ा अंगरक्षक ही चोर है।”
ऐसा सुनते ही वह अंगरक्षक भागने लगा, पर वहां मौजूद सिपाहियों ने उसे धर दबोचा ।
राजा और बाकी सभी लोग हैरान थे कि तेनालीराम ने कैसे पता कर लिया कि चोर वही है । राजा ने तेनाली राम से पूछा कि अँगूठी चोर को तुमने कैसे पहचाना ।
तेनालीराम ने बताया राजन ,”मैंने पुजारी जी से कहकर काली मां के पैरों पर तेज़ सुगन्धित इत्र छिड़कवा दिया था । जिस कारण जिसने भी मां के पैर छुए । उसके हाथ में वही सुगन्ध की महक आ गयी ।लेकिन सातवें अंगरक्षक के हाथ में कोई खुशबू की महक नहीं थी ।क्योंकि उसने पकड़े जाने के डर से मां काली की मूर्ति के पैर छुए ही नहीं ।”
राजा कृष्ण देव राय तेनालीराम की बुद्धिमत्ता से अत्यंत प्रभावित हुए ।

 

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