जयशंकर प्रसाद का जीवन और साहित्य | Jaishankar Prasad in Hindi |


जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख साहित्यकार माने जाते है। उन्हें एक नाटककार ,कहानीकार , उपन्यासकार, निबंधकार और कवि  के रूप में जाना जाता है । वे छायावाद के चार स्तम्भों  में से एक है । उन्हें छायावाद का ब्रह्मा भी कहा जाता है। इन्हे ‘कामायनी’ महाकाव्य के लिए ‘मंगलाप्रसादपारितोषिक पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया।


जयशंकर प्रसाद का प्रारम्भिक जीवन :

जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 वाराणसी ,उत्तरप्रदेश में हुआ था। इनके पिता का नाम देवीप्रसाद था। इनके बड़े भाई का नाम शंभूरत्न था। इनके दादा और पिता जी तम्बाकू का व्यापार करते थे। इनका परिवार सुंघई परिवार के नाम से जाना जाता था। इनके पिता और दादा जी बहुत ही उदार दानी थे। वे हर प्रकार से सम्पन्न थे। लेकिन जब वे 12 वर्ष के थे, तभी उनके पिता की मृत्यु हो गयी थी। इनके चार वर्ष बाद इनके माँ का भी देहावसान हो गया। इसके बाद बड़े भाई शंभु रत्न ने व्यापार संभाला। जयशंकर प्रसाद की आगे शिक्षा के लिए विद्यालय में भर्ती कराया। उन्होंने क्वीन्स कालेज से पढ़ाई की। लेकिन आठवीं कक्षा के बाद इनका विद्यालय की शिक्षा में पढ़ने का मन नहीं हुआ। अतः घर पर ही इनकी शिक्षा का प्रबंध कर दिया गया।
दीनबंभु ब्रह्मचारी जैसे योग्य शिक्षक से  उन्हें संस्कृत का ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके साथ ही इन्होने अंग्रेजी ,हिंदी ,उर्दू और फ़ारसी जैसे विषयो में गहनता से अध्ययन किया। उन्होंने वेद, पुराण ,इतिहास और साहित्य का भी गहराई से अध्ययन किया । बचपन में ही जयशंकर प्रसाद को  साहित्य में बहुत रूचि थी। उन्होंने 9 वर्ष की अवस्था में गुरु रसमय सिद्ध को ब्रज भाषा में ‘कलाधर ‘ एक सवैया की रचना की । जिससे उनके गुरु अत्यधिक प्रभावित हुए थे।
बड़े भाई इनके साहित्य प्रेम से खुश नहीं थे क्योकि वे चाहते थे कि जयशंकर प्रसाद अपने खानदानी व्यापार को आगे बढ़ाये . लेकिन उनका हिंदी साहित्य में अनन्य प्रेम देख कर उन्होंने जयशंकर प्रसाद को साहित्य लिखने-पढ़ने की छूट दे दी । जयशंकर प्रसाद साहित्य और कविता में रमे हुए थे ,तभी उनके उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया। उस समय वे मात्र 17 वर्ष के थे।

जयशंकर प्रसाद का वैवाहिक जीवन :

 बड़े भाई के निधन के बाद व्यापार का सारा काम काज जय शंकर प्रसाद के ऊपर आ गया। उनका व्यापार में काफी उधार भी हो चुका था। जिससे उनकी आर्थिक दशा भी ख़राब हो गयी थी। इसमें उनको पैतृक सम्पत्ति बेचनी पड़ी। रोग ,मृत्यु, और शोक से वे विचलित हो गए थे।  पिता ,माँ और भाई की मृत्यु से वे बहुत निराश हो गए थे। उनके मन में वैराग्य उत्पन्न  हो गया था। लेकिन अपनी भाभी के अनुरोध पर वे गृहस्थ की ओर लौटे। 


1906 में उनका विवाह उनकी भाभी विंध्यवाहिनी से करा दिया। उन्होंने व्यापार सम्हाला और लेखन कार्य  किया। विंध्यवाहिनी के साथ भी वे ज्यादा दिनों तक नहीं रह सके क्योकि वे टी बी की बीमारी से ग्रसित थी। वर्ष 1916 में उनका निधन हो गया।  गृहस्थ जीवन का सुख उनको प्राप्त नहीं हो सका । अतः उन्होंने शादी न करने का निश्चय किया। लेकिन परिवार वालो की जिद से उन्होंने दूसरा विवाह कमला देवी से किया। उनसे उन्हे  एक बेटा रत्नशंकर हुआ।

साहित्यिक परिचय :

काव्य रचना : हिंदी काव्य में छायावाद की स्थापना की। काव्य रचना का प्रारंभ ब्रज भाषा से प्रारम्भ किया और बाद में खड़ी बोली को अपनाया। काव्य की उनकी प्रमुख रचनाओ मे 
कानन कुसुम, झरना ,आंसू ,लहर, कामायनी ,प्रेम पथिक आदि है। 
इनकी सर्वप्रथम छायावादी रचना ‘खोलो द्वार’ 1914 ने इंदु पत्रिका में प्रकाशित हुयी। काव्य में प्रसाद जी की अद्वितीय रचना ‘कामायनी’ (1935) है । मनु और श्रद्धा को आधार बनाकर ‘कामायनी ‘ मानवता की स्थापना का संदेश देता है। इनमे मनु ,श्रद्धा और इड़ा (बुद्धि) के योग से मानव सृष्टि और आनंद के दर्शन होते है । सुमित्रा नंदन पंथ ने इस महाकाव्य को ‘हिंदी का ताजमहल’ माना है। शिल्पविधान ,भावाभिव्यक्ति और भाषा की दृष्टि से इसकी तुलना खड़ी बोली के किसी भी काव्य से नही की जा सकती है ।

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कहानी संग्रह : आधुनिक कहानियों की शुरुआत जयशंकर प्रसाद जी ने प्रारम्भ कर दी थी उनकी पहली कहै ग्राम इंदु ने प्रकाशित हुई थी । उन्होंने 72 कहानियों की रचना की थी। मुख्य कहानी संग्रह छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आधी, इंद्रजाल , गुंडा, पुरस्कार, मधुलिका आदि है ।
उनकी कहानियों में भावनाप्रधान प्रेमकहनियाँ , समस्यापरक, रहस्यवादी, और आदर्शवाद और यथार्थ वाद से संबंधित कहानियों मिलती है । उनकी कहानियों में पौराणिक और ऐतिहासिक कथानकों पर वास्तविक और कलात्मक कहांनियों की भी रचना की ।

उपन्यास : जयशंकर प्रसाद जी मे तीन उपन्यास लिखे है :
कंकाल : नागरिक सभ्यता का यथार्थ चित्रण किया गया है ।
तितली : इसमे ग्रामीणों जीवन के सुधार की बात करते है ।
इरावती : यह ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में लिखा गया । यह उपन्यास अधूरा है ।

नाटक : उन्होंने 13 नाटकों की रचना की । इसमें आठ ऐतिहासिक, तीन पौराणिक और दो भावात्मक नाटक है । जयशंकर प्रसाद हिंदी के सर्वश्रेष्ठ नाटककार है ।
कामना और एक घूंट छोड़कर सबी नाटक  महाभारत से लेकर हर्षवर्धन तक के समय के है । अधिकतर नाटक इतिहास की पृष्टभूमि मे राष्ट्रीय चेतना पर आधारित है ।
जय शंकर प्रसाद के मुख्य नाटकों में स्कन्दगुप्त, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, जनमेजय का नागमय, राज्यश्री, कामना ,एक घूंट है। 

निबंध : प्रसाद जी ने इंदु पत्रिका में कई विषयों पर निबंध लिखे है । सम्राट चंद्रगुप्त, प्राचीन आर्यावर्त और उसका प्रथम सम्राट आदि मुख्य है । उनके निबंधों में विचारों की गहराई और साहित्यों की मान्यताओं का वैज्ञानिक विश्लेषण मिलता है ।

अंतिम समय :

15 नवम्बर 1937 को 48 वर्ष की अवस्था में उनका असमय निधन हो गया था। वे भी टी बी की बीमारी से ग्रसित थे । इतने कम समय में उन्होंने साहित्य को उच्च शिखरों तक पहुंचाया। वे बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्तित्व थे । काशी नागरी प्रचारणी के उपाध्यक्ष भी रहे। उनका साहित्य इस बात का गवाह है कि वे आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रणेता के रूप में विद्यमान  है।  

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