रहीमदास|Rahim Ka Jeevan Parichay|Rahimdas Biography In Hindi
रहीमदास जी भक्ति काल के प्रमुख कवि के रूप में जाने जाते है। उनके नीतिपरक दोहे आज भी प्रसिद्ध और लोकप्रिय है। मुसलमान होते हुए भी उन्हें हिन्दू रीति रिवाज़ और संस्कारों का अच्छा ज्ञान था।वे एक कुशल प्रशासक भी थे। सम्राट अकबर ने गुजरात युद्ध में उनके शौर्य के कारण उन्हें ‘खान ए खाना ‘की उपाधि दी। जिसके कारण उन्हें अब्दुर्रहीम खान ए खाना के नाम से जाना जाता है। अपनी बहुमुखी प्रतिभा के कारण वे सम्राट अकबर के नौरत्नों में से एक थे।
रहीम का प्रारंभिक जीवन :
रहीमदास का जन्म 17 दिसंबर 1556 ईसवी में लाहौर में हुआ था। रहीमदास के पिता का नाम बैरमखाँ था जो अकबर के संरक्षक थे। रहीम जी की माँ हरियाणा प्रान्त के राजपूत जमालखान की पुत्री सुल्ताना बेगम थी। जब रहीम 5 वर्ष के थे तभी 1561 मे उनके पिता बैरम खान की एक अफगान सरदार मुबारक़ खाँ ने धोखे से हत्या कर दी। सम्राट अकबर ने सुल्ताना बेगम को दरबार बुला लिया। अकबर ने उदारता का परिचय देते हुए रहीम की परवरिश का जिम्मा खुद ले लिया। मुल्ला मोहम्मद अमीन से शिक्षा दिलवाई। उन्होंने तुर्की ,अरबी,फ़ारसी भाषा सीखी इसके साथ ही छंद रचना और ,कविता करना और गणित और तर्कशास्त्र ज्ञान प्राप्त किया । बदाऊनि रहीम के संस्कृत के शिक्षक थे। सम्राट अकबर ने रहीमदास को मिर्जा खान की उपाधि से सम्मानित किया। कुछ दिनों के पश्चात् सम्राट अकबर ने विधवा सुलतान बेगम से विवाह कर लिया।
विवाह :
सम्राट अकबर ने रहीमदास जी का विवाह बैरम खां के विरोधी मिर्जा अज़ीज कोका की बहन माहबानो से करवा दी। इस विवाह के होने से पुराना बैर ख़त्म हुआ। इस समय रहीमदास की उम्र 13 वर्ष की थी। रहीमदास की 10 संतानें हुयी।
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कलम और तलवार के सिपाही :
रहीम जी एक तरफ तो नीतिपरक दोहे के माध्यम से समाज को नई दिशा दिखा रहे थे। तो दूसरी तरफ सम्राट अकबर के लिए कई युद्धों में विजय प्राप्त की। जिसमे गुजरात ,कुम्भलनेर ,उदयपुर आदि प्रमुख है। सम्राट अकबर के दरवार में ‘मीर अर्ज ‘का पद एक बहुत ही महत्वपूर्ण होता है जिसमे जनता की फ़रियाद सम्राट तक पहुँचती थी। सम्राट के निर्णय भी इसी पद सेद्वारा जनता तक पहुँचता था। यह पद भी रहीमदास जी को प्राप्त था। उनकी काबिलियत को देखते हुए सम्राट अकबर ने शहजादे सलीम की शिक्षा भी रहीमदास जी की देखरेख में कराई।
मृत्यु :
रहीमदास जी की मृत्यु 1625 ईस्वी में 70 वर्ष में हुयी। रहीम दास का मकबरा दिल्ली में स्थित है। रहीम ने यह मकबरा अपनी बेगम की याद मे 1598 ईस्वी में बनवाया था। बाद में रहीमदास जी की मृत्यु के पश्चात् उन्हे वही दफनाया गया।
रहीमदास के काव्यगत विशेषता :
रहीमदास जी की भाषा आम जन की भाषा थी। उन्होंने अधिकतर अवधी और ब्रजभाषा का प्रयोग किया ।उन्होंने तदभव शब्द का अधिक प्रयोग किया है। उनके काव्य में शृंगार ,शांत और हास्य रस मिलते है। रहीम जी की काव्य रचना मुक्तक शैली में की गयी है। इनके काव्य में नीतिपरक और ज्ञान के संदेश होते है जो जनमानस को प्रेरित करते है। उनकी रचनाओं में दोहा, सोरठा, सवैया, बरवै और कवित्त देखने को मिलता है। जिसमें रूपक, उपमा ,उत्प्रेक्षा ,अनुप्रास और द्रष्टान्त अलंकार का प्रयोग मिलता है।
रहीमदास की रचनाएँ :
इनकी महत्वपूर्ण रचनाओ में रहीम सतसई,श्रंगार सतसई ,मदनाष्टक ,रासपंचाध्यायी ,बरवै नायिका -भेद, रहीम विलास ,रहिमन विनोद आदि है। उन्होंने फ़ारसी भाषा में भी ग्रंथो की रचना की।
रहीमदास जी ने तुर्की भाषा में लिखी बाबर की आत्मकथा ‘तुजके बाबरी ‘का फ़ारसी में अनुवाद किया। ‘मआसिरि रहीमी ‘ और ‘आईने अकबरी ‘ खानखाना और रहीम के नाम से कविता की ।
रहीमदास जी ने गंगा जमुना संस्कृति को आत्मसात किया। वे मानव एकता के पक्षधर थे। वे एक दानवीर ,विद्वान और उच्चकोटि के कवि थे। तभी उन्हें भक्तिकाल के अग्रणी कवि के रूप में जाना जाता है।
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