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बसंत पंचमी का पर्व (Basant Panchami Festival In Hindi)


बसंत पंचमी का त्यौहार माघ मास की पंचमी को मनाते है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन विद्या की देवी सरस्वती प्रकट हुयी थी। अतः देवी सरस्वती की जयंती  के रूप में मनाया जाता है।  इस दिन ऋतुराज बसंत का आगमन होता है।बसंत ऋतु  का वातावरण  अन्य 6 ऋतुओं से सबसे सुहावना  होता है। अतः इसे ऋतुराज भी कहा जाता है। इस ऋतु  में न अधिक सर्दी और  न अधिक गर्मी होती है। गेहू के हरे खेत और सरसो के पीले पुष्प धरती को श्रृंगारमय बना देते है।  ऐसा प्रतीक होते है जैसे पीत वस्त्र की चादर धरती पर बिछी हुई है। सारी  प्रकृति में जैसे जीवन का संचार होता है। यह समृद्धि और सम्पन्नता का प्रतीक है। इस दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पर्व पूर्वी और उत्तर भारत ,बांग्लादेश और नेपाल में मनाया जाता है।



पूजा मुहूर्त और तिथि :

इस वर्ष बसंत पंचमी की शुरुआत  25  जनवरी 2023 को दोपहर 12 बजकर 34 मिनट से  उदयातिथि 26 जनवरी 10  बजकर 28 मिनट तक है ।  अतः 26  जनवरी को ही बसंत पंचमी पूजा का शुभ महूर्त है। सुबह स्नान करके पीला और स्वेत वस्त्र धारण करे। पूजा के  स्थान पर माँ सरस्वती की मूर्ति या उनकी तस्वीर स्थापित करे। माँ सरस्वती को गंगा जल से स्न्नान कराये उन्हें पीले वस्त्र पहनाये। गेंदे के फूल के माला अक्षत ,सफ़ेद चंदन या पीले रंग की रोली ,पीला गुलाब ,धूप इत्र आदि अर्पित करे। इसके बाद पीले रंग की मिठाई का भोग चढ़ाये। सरस्वती वंदना और माँ सरस्वती की पूजा और मन्त्र का उच्चारण करे। सरस्वती कवच का भी पाठ कर सकते  है। बाद में हवन कुंड बनाकर हवन  सामग्री तैयार कर ले।  ‘ओम श्री सरस्वत्यै  नमः स्वाहा’ मंत्र का जाप करे। अंत में खड़े होकर सरस्वती देवी की आरती करे। 

बसंत पंचमी
बसंत पंचमी

बसंत पंचमी और कामदेव :


इस दिन कामदेव और उनकी पत्नी रति की भी पूजा की जाती है। प्रेम के देवता कामदेव भगवान  विष्णु और माता लक्ष्मी के पुत्र है. कामदेव और रति को पुराणों में प्रेम और यौन संबंध के देवी देवताओं के रूप में बताया जाता है। ऐसी मान्यता  है कि बसंत  पंचमी के दिन कामदेव और रति,ऋतुराज बसंत के साथ पृथ्वी पर विचरण करते है। धरती के सभी जीव जन्तुओ के हृदय में प्रेम और यौन भावनाएं जगृत करने का काम करते है। 


पौराणिक कथाएं :

उपनिषद के अनुसार ब्रह्मा जी और विष्णु जी के आवाहन पर आदिशक्ति दुर्गा माता  के शरीर से श्वेत रंग का एक भारी  तेज उत्पन्न हुआ जो एक दिव्य नारी के रूप में बदल गया। यह स्वरूप एक सुन्दर स्त्री का था जिनके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में वर मुद्रा थी अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और एक माला थी। आदि शक्ति दुर्गा जी के तेज से उत्पन्न देवी ने वीणा का मधुर नाद  किया।  इससे संसार के समस्त जीव जंतुओं को वाणी प्राप्त हुयी. जलधारा में कोलाहल व्याप्त हुआ और पवन चलने से सरसराहट उत्पन्न हुयी। सभी देवताओं ने शब्द और रस  का संचार कर देने वाली देवी की अधिष्ठात्री देवी ‘सरस्वती’ कहा।  देवी सरस्वती को वागेश्वरी ,भगवती ,शारदा वीणा वादिनी और वाग्देवी सहित अनेक नामो  से पूजा जाता है । ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा  गया है :
‘प्रणो देवी सरस्वती बाजेमिर्व जिन्वति धिणामणि त्रय वयु  ‘
अर्थात ‘ये परम चेतना सरस्वती के रूप में हमारी बुद्धि ,प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका है। हमें जो आचार और मेघा है उसका आधार माँ सरस्वती है।  इनकी संवृद्धि और स्वरुप का वैभव अद्भुत है। ‘पुराणों के अनुसार ,’श्री कृष्ण ने देवी सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी  के दिन तुम्हारी आराधना की जाएगी।  

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बसंत पंचमी कैसे मनाते है :

इस दिन माँ सरस्वती की पूजा को लेकर बड़ा उत्साह देखने को मिलता हैं। छात्र स्कूल कालेजों  में  माँ सरस्वती को पीला पुष्प अर्पित करते है।  सरस्वती पूजा पंडाल और मंदिरो में  विशेष पूजा का आयोजन होता है। पंडित जी  विधि -विधान से माँ सरस्वती ,विष्णु भगवान और कामदेव की पूजा की जाती है।माँ सरस्वती की वंदना और आरती की जाती है।  विद्यार्थी वर्ग अपने पढ़ाई  को लेकर अधिक उत्साहित होते है। वे संकल्प लेते हे कि उनकी विद्या और बुद्धि का विस्तार हो। शास्त्रों  में कहा  गया है कि पीला रंग माँ सरस्वती को पसंद है अतः इस दिन पीले रंग का महत्व बढ़ जाता है। इसे बसंती रंग भी कहा जाता है। हर राज्य में उनके खान -पान के अनुसार यह त्यौहार मनाया जाता है।  जैसे  बंगाल में लड्डू और मीठे चावल ,बिहार में मालपुआ और खीर और बूंदी के लड्डू ,उत्तर प्रदेश में केसरिया चावल और पंजाब में मीठा चावल ,मक्के की रोटी और सरसो का सांग प्रसाद रूप  वितरित किया जाता है।  बसंत पंचमी के 40  दिन बाद होली का त्यौहार मनाया जाता है।  अतः इस दिन से होलिका दहन के लिए लकड़ियाँ इकट्ठी करनी प्रारंभ  कर दी जाती है । बसंत  पंचमी के दिन पतंगबाजी का आयोजन भी होता है। विशेषकर पंजाब ,उत्तरप्रदेश ,बिहार पतंग उड़ाने  और पेच लड़ाने का कम्पटीशन भी होता है । 

सरसों की खेती
सरसों की खेती


ऐतिहासिक महत्व :

-वसंत पंचमी के दिन वर्ष 1192 से हमें पृथ्वीराज चौहान से जुड़ी  घटना  की भी याद दिलाता है। पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को 16  बार  विदेशी आक्रमणकारी मुहम्मद गोरी को हयुद्ध में हराया था और जीवित छोड़ दिया था।  17  वी बार पृथ्वीराज की हार हुयी तो मोहम्मद गोरी ने उन्हें नहीं छोड़ा बल्कि अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी दर्दनांक तरीके से उनकी आँख  फोड़ दीऔर मृत्यु दंड की सजा सुनाई. लेकिन मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्द भेदी बाण का कमाल देखना चाहा .पृथ्वी राज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर गोरी ने ऊँचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मार कर संकेत दिया।  तभी  कवि चंदबरदाई ने कविता के रूप में पृथ्वीराज को संकेत दिया :
‘चार बांस  चौबीस गज ,अंगुल अष्ट प्रमाण। ता ऊपर सुलतान है ,मत चूको  चौहान।। ‘
पृथ्वीराज चौहान  ने इस बार चूक नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और और कवि चंदबरदाई के संकेत के अनुमान से बाण चलाया जो सीधा मोहम्मद गोरी के सीने में लगा। मोहम्मद गोरी  वही मारा गया। इसके बाद पृथ्वीराज और चंदबरदाई ने भी एक दूसरे को छुरा भोंककर आत्मबलिदान कर दिया।  यह घटना बसंत पंचमी वाले दिन हुयी। 
-बसंत पंचमी के दिन ही सिखों  के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी  का विवाह हुआ था। 
-वसंत पंचमी के दिन 1816  में  राम सिंह कूका का भी जन्म  लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ था। शुरू में वे  राम सिंह कूका महाराजा रणजीत की सेना में रहे। बाद में उन्होंने अध्यात्म को अपना लिया उनके शिष्यों  ने बाद में कूका पंथ की स्थापना की। -राजा भोज का जन्मदिन बसंत पंचमी को हुआ था। 
-हिंदी साहित्य के महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी का जन्म भी बसंत पंचमी 28 फ़रवरी 1899 में हुआ था ।
बसंत पंचमी को  ज्ञान और प्रेम के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। जहां एक ओर माँ सरस्वती ज्ञान और संगीत की देयता है तो दूसरी ओर कामदेव और रति प्रेम और रस का संचार करते है। प्रकृति और जन- मानस  में यह रूप स्पष्ट दिखाई देता है ।  


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