History & Story of Rani Padmawati in hindi : रानी पद्मावती का इतिहास और कहानी :


History & Story of Rani Padmawati in hindi : रानी पद्मावती का इतिहास और कहानी :


रानी पद्मावती का नाम इतिहास में बहुत प्रसिद्ध है । राजपूत वंश की आन बान और शान की  रक्षा करने वाली रानी पद्मावती ने विदेशी मुग़ल शासक के आगे समर्पण नही किया बल्कि अपने प्राणों की आहुति दे दी ।

स्रोत :


रानी पद्मावती के बारे में मुख्य स्त्रोत कवि मलिक मोहम्मद जायसी कृत महाकाव्य ‘पद्मावत ‘का विस्तार से वर्णन मिलता है । यह 1540 ईस्वी में लिखा गया ।

जन्म और बचपन :

पद्मावती का जन्म सिंघल (श्री लंका) में हुआ था । इनके पिता गन्धर्भ सेन वहाँ के राजा थे। इनकी माता का नाम चम्पावती था ।  पद्मावती के पास एक बोलने वाला तोता का उल्लेख मिलता है । जिसका नाम ‘हीरामणि ‘ था । रानी पद्मावती बचपन से ही बहुत सुन्दर और स्वाभिमानी थी ।

पद्मावती का स्वयंवर :

पद्मावती के लिए उनके पिता ने एक स्वयंवर का आयोजन कराया । जिसमे देश के सभी राजाओं को आमंत्रित किया गया । इसमें सबसे पहले एक राज्य के राजा मलखान सिंह ने पद्मावती का हाथ माँगा । चितौड़ के राजा रावल रतनसिंह भी वहाँ मौजूद थे ।उन्होंने ने मलखानसिंह को चुनौती दी । उन्हें युद्ध में परास्त कर रानी पद्मावती से विधिवत विवाह किया और उन्हें चित्तौड़ ले आये ।

चित्तौड़  के राजा रावल रतनसिंह :

राजा रतन सिंह एक बहुत ही प्रतापी और कुशल राजा थे ।उन्होंने अपने राज्य में कला और संगीत को भी काफी महत्व दिया । उनके राज्य में एक राघव चेतन नाम का गायक था । उसके चर्चे जब राजा रतनसिंह तक पहुँचे तो उन्होंने उसको दरबार में बुलाकर सम्मानित किया और उसे दरबार में रख लिया ।

राघव चेतन और उसकी देश विरोधी गतिविधि :

लेकिन किसी को यह नही पता था कि राघव चेतन काला जादू और तांत्रिक विद्या भी जानता है । वह यह कार्य अपने राज्य विरोधी गतिविधियों में लगाता था । राघव चेतन रंगे हाथो पकड़ा गया । राजा रतन सिंह के आदेशानुसार उसे मुँह काला कर  गधे में बैठा कर पूरे शहर में घुमाया गया और राज्य से निकाल दिया गया ।


राघव चेतन राजा रतनसेन से अपना बदला लेना चाहता था । उस समय दिल्ली का शासक अलाउद्दीन ख़िलजी था । राघव चेतन को यह मालूम था कि अलाउद्दीन खिलजी शिकार खेलने के लिए एक जंगल में जाया करता है । वही एक दिन जब सुल्तान अलाउद्दीन शिकार खेलने गया तो उसे बाँसुरी की सुरीली आवाज सुनाई पड़ी । उसने बाँसुरी बजाने वाले को बुलाया । वह राघव चेतन ही था । अलाउद्दीन उससे बहुत प्रभावित हुआ और उसे दिल्ली ले गया । राघव चेतन ने अलाउद्दीन को चित्तौड़ राज्य की धनसंपदा  और रानी पद्मावती की सुंदरता के बारे में विस्तार से बताया । अलाउद्दीन यह सब सुनकर उसको पाने के लिए व्याकुल हो गया ।

सुलतान अलाउद्दीन और रानी पद्मावती :

अलाउद्दीन को यह मालूम था कि चित्तौड़ के किले के अंदर और  रानी पद्मावती तक पहुँचना इतना आसान नही था । अतः उसने कूटनीति और छल का  सहारा लिया । उसने राजा रतन सेन तक यह संदेश भिजवाया कि वह रानी पद्मावती को अपनी बहन मानकर उससे मिलना चाहता है । सेनापति गोरा और बादल इस बात से काफी नाराज थे । वे नही चाहते थे कि विदेशी आक्रमणकारी,  उनकी रानी को गलत नजर से देखें । दिल्ली का सुलतान अलाउद्दीन ताकतवर शासक था । मुगलो की सेना के आगे राजपूत सेना बहुत कम थी । राजा रतनसिंह न चाहते हुए भी प्रजा के हितो की रक्षा हेतु  रानी पद्मावती को आईने में दिखाने को  राजी हो गए । रानी की सुंदरता को देखकर अलाउद्दीन ख़िलजी की चाहत और वासना, और अधिक बढ़ गयी । वह किसी भी प्रकार रानी पद्मावती को पाना चाहता था । अपने शिविर में लौटते समय अलाउद्दीन, राजा रतन सिंह  के साथ  आते समय मौका देखकर , राजा को बंदी बना लेता है । यह आदेश देता है क़ि ’10 दिनो के अंदर यदि रानी पद्मावती को भेज दिया जाये नही तो राजा  का शीश काट दिया जायेगा ।’

रानी पद्मावती की सूझ-बूझ सेनापति गोरा और बादल की वीरता और राजा की रिहाई :
इस संकट की घड़ी में रानी पद्मावती ने अत्यन्त सूझ-बूझ का परिचय दिया । उसने राजा के सेनापति गोरा, बादल और चुने हुए सैनिकों के साथ एक योजना बनायी । अलाउद्दीन को यह सूचना भेज दी गयी कि रानी पद्मावती अपने 150 सखियों के साथ उससे  मिलने आ रही है । अलाउद्दीन की ख़ुशी का ठिकाना न रहा । वह बेसब्री से रानी पद्मावती का इंतज़ार कर रहा था । उन पालकियों में सेनापति गोरा और बादल के साथ चुने हुए वीर सैनिक थे । जो अपने राजा को छुड़ाने पूरी तैयारी के साथ आये थे । राजा रतनसिंह जिस शिविर में थे । उसके सामने पालकी से गोरा और बादल अपने शस्त्रो के साथ वीरता से लड़ते हुए राजा के पास गए और उन्हें कैद से मुक्त कराया । ऐसे में मुग़ल सैनिको और चुने हुए राजपूत सैनिकों के बीच युद्ध हुआ । गोरा युद्ध में वीरतापूर्वक लड़ते हुए शहीद हो गया । लेकिन बादल राजा रतन सिंह को सही सलामत क़िले में वापस लाने में  सफल रहा ।

अलाउद्दीन और राजपूतो से युद्ध :

अपनी हार से बौखलाया सुलतान अपने सैनिकों को चितौड़ पर आक्रमण करने का आदेश देता है। लेकिन वह किले के अंदर दाखिल होने में सफल नही हो पाता । इसके बाद सुलतान अलाउद्दीन चारो ओर से किले को घेर लेता है । अलाउद्दीन की सेना बहुत बड़ी संख्या में थी । वे कई दिनों तक किले के सामने डेरा डाले पड़ेे  रहे ।
धीरे -धीरे क़िले के अंदर खाने पीने की कमी होने लगी । अंत में राजा रतन सिंह को अपने प्रजा का दुःख देखा नही गया । उन्होने  आदेश दिया कि किले का दरवाजा खोल दिया जाये और सेनाओं से कहा  कि वे मरते दम तक युद्ध करे । राजा रतन सिंह और उनकी सेना युद्ध में लड़ते -लड़ते वीरगति को प्राप्त हुए ।

रानी का जौहर :
26 अगस्त 1303  में रानी पद्मावती के सामने दो विकल्प  रह गए  या तो वो मुगलों के सामने आत्मसमर्पण करे  या फिर जौहर व्रत करे । उन्होंने निर्णय लिया की दुश्मनो के सामने समर्पण लेने से अच्छा है कि देश की आन बान के लिए अपना बलिदान किया जाये । उन्होंने एक बड़ा हवन कुण्ड बनवाया और 16000 राजपूत महिलाओं के साथ  हवन कुण्ड में अपने आप को समर्पित कर  दिया।अपने देश के स्वाभिमान के लिए ऐसा उदाहरण शायद ही कही मिलता हो । मुगल सैनिक जब किले में प्रवेश करते है तो उन्हें वहाँ राख और जली हुयी हड्डियों के अतरिक्त कुछ भी नही मिलता है ।

रानी पद्मावती पर फ़िल्म :

रानी पद्मावती पर एक फ़िल्म काफी दिनों से चर्चा में है ।इसके डायरेक्टर संजय लीला भंसारी है ।पद्मावती की मुख्य भूमिका मे दीपिका पादुकोण है । नायक की भूमिका शाहिद कपूर और अलाउद्दीन  ख़िलजी की भूमिका रणधीर कपूर कर रहे है ।

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