Kabir ke dohe :कबीर दास जी के 25 प्रसिद्ध दोहे अर्थसहित :


Kabir ke dohe :कबीर दास जी के 25 प्रसिद्ध दोहे अर्थसहित :

जीवन परिचय :
नाम : संत कबीर दास / Kabir Das                                                                                                      जन्म : सम्वत् 1440
स्थान: लहरतारा – वाराणसी
मृत्यु : सम्वत् 1518 मगहर                                                                                                  रचना : कबीर ग्रन्थावली, अनुराग सागर,सखिग्रन्थ, बीजक आदि ।


  • Kabir ke dohe
    Kabir ke dohe

संत कबीर दास (Kabir) जी ने समाज को एक नई दिशा दी । उनके दोहे आज भी पथप्रदर्शक के रूप में प्रासंगिक है । उनके द्वारा बताये रास्ते पर चलकर ब्रह्म तक पहुँचा जा सकता है । वे निर्गुन ब्रह्म के उपासक थे । हिंदू-मुस्लिम एकता के समर्थक थे । लेकिन उन्होंने दोनों ही धर्मो के रूढ़िवाद और अंधविश्वास का जमकर विरोध किया । एक तरफ तो उन्होंने ‘ढाई आखर प्रेम का  पढै सो पंडित होय ‘  आपसी भाई चारे और प्रेम का सन्देश दिया तो दूसरी ओर एक क्रांतिकारी  विचारक के रूप दृष्टिगत होते है : ‘कबिरा खड़ा बाजार में लिए लुकाठा हाथ, जो घर फूंके आपना ,चले हमारे साथ ‘ अर्थात स्वयं के स्वार्थ  को त्याग कर ही व्यक्ति अपना और समाज का उत्थान कर सकता है । प्रस्तुत है संत कबीर दास (Kabir) जी के प्रसिद्ध दोहे :

[1]

 दुःख में सुमिरन सब  करे ,सुख में करे कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे को होय।।


अर्थ : मनुष्य ईश्वर को दुःख में याद करता  है । सुख में कोई नही याद करता है। यदि सुख में परमात्मा को याद किया जाये तो दुःख ही क्यों हो ।

[2]

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा मिलया कोय
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा कोय ।।

 

अर्थ : जब मैं संसार में बुराई खोजने निकला तो मुझे कोई भी बुरा नही मिला । लेकिन जब मैंने अपने मन में देखने का प्रयास किया तो मुझे यह ज्ञात हुआ कि दुनिया में मुझसे बुरा कोई नही है ।

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[3]

 साई इतना दीजिये तामें कुटुम समाये
मै भी भूखा रहूँ ,साधु भूखा जाये ।।

अर्थ: कबीर दास (Kabir) जी कहते है कि ईश्वर  इतनी कृपा करना कि जिसमे मेरा परिवार सुख से रहे । न मैं भूखा रहूँ और न मेरे यहां आया अतिथि भूखा  जाये ।

[4]

निंदक नियरे राखिये,आँगन कुटी छवाय
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।

अर्थ: संत कबीर (Kabir) जी  कहते है कि जो हमारी निंदा करते है , उन्हें अपने सबसे पास रखना चाहिए । क्योकि वे बिना साबुन और पानी के हमेशा  हमारी कमियो को बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ करते है ।

[5]

अति का भला बोलना, अति की भली चूप
अति का भला बरसना , अति की भली घूप ।।

अर्थ : न तो अधिक बोलना अच्छा है , न ही जरुरत से ज्यादा चुप रहना जैसे बहुत अधिक वर्षा होना भी अच्छा नही है और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नही होती ।

[6]

जब मै था तब हरी नही, अब हरी है मै नाही।
सब अंधियारा मिट गया, दीपक देख्या माही ।।

अर्थ ; जब मैं अपने अहंकार में डूबा था । तब अपने इष्ट देव को नही देख पाता था । लेकिन जब गुरु ने मेरे अंदर ज्ञान का दीपक  प्रकाशित किया तब अन्धकार रूपी अज्ञान मिट गया और ज्ञान के आलोक में ईश्वर को पाया ।

[7]

मालिन आवत देखि के कलियाँ करे पुकार
फूले फूले चुन लिये,कालि हमार बारि ।।

अर्थ : कबीर दास (Kabir) जी ने इस दोहे में जीवन की वास्तविकता का दर्शन कराया  है । मालिन को आता देख कर बगीचे की कलियां आपस में बाते करती है । आज मलिन ने फूलों को तोड़ लिया है ।कल हमारी बारी आ जाएगी । कल हम फूल बनेगे ।अर्थात आज आज आप जवान हो कल आप भी बूढे हो जाओगे और एक दिन मिट्टी में मिल मिल जाओगे ।

[8]

काल करे सो आज कर आज करे सो अब
पल में परलै होयेगी , बहुरि करेगा कल ।।

अर्थ : हमारे पास समय बहुत कम है ,जो काम कल करना है उसे आज करो और जो आज करना है ,उसे अभी करो । पल भर ने प्रलय आ जायेगी । फिर अपने काम कब करोगे ।

[9]

चाह मिटी चिंता मिटी ,मनवा बेपरवाह
जिसको कुछ नही चाहिए,वह शहनशाह ।।

अर्थ : दुनिया ने जिस व्यक्ति को पाने की इक्छा  है ,उसे उस चीज को पाने की चिंता है ,मिल जाने पर उसे खो देने की चिंता है । दुनिया में वही खुश है जिसके पास कुछ नही है । उसे खोने का डर नही है । पाने की चिंता नही है । ऐसा व्यक्ति ही दुनिया का राजा है ।

[10]

ऐसी बानी बोलिये ,मन का आप खोय
औरन को शीतल करे ,आपहु शीतल होय ।।

अर्थ : अपने मन में अहंकार को त्याग कर ऐसे नम्र औए मीठे शब्द बोलना चाहिए जिससे सुनने वाले के मन को अच्छा लगे । ऐसी भाषा दूसरों को सुख पहुंचाती है । साथ ही स्वयं  को भी सुख देने वाली होती है ।

[11]

संत ना छोड़े संतई ,कोटिक मिले असंत
चन्दन विष व्यापत नही, लिपटे रहत भुजंग ।।

अर्थ : सज्जन व्यक्ति को चाहे करोड़ो दुष्ट पुरुष मिल जाये फिर भी वह अपने सभ्य विचार ,सद्गुण नहीं छोड़ता । जिस प्रकार चंदन के पेड़ से साँप लिपटें रहते है । फिर भी वह अपनी शीतलता नही छोड़ता ।

[12]

तन को जोगी सब करे, मन को बिरले कोय
सहजे सब विधि पाइए ,जोमं जोगी होए ।।

अर्थ :शरीर में भगवे वस्त्र धारण करना आसान है लेकिन मन को योगी बनाना ,बिरले व्यक्ति का ही काम है ।यदि मन योगी हो जाये तो सारी सिद्धियां सहज ही प्राप्त हो जाती है ।

[13]

माटी कहे कुम्हार से ,तू क्या रौंदे मोहे
एक दिन ऐसा आएगा ,मै रौंदूंगी तोहे ।।

अर्थ : कुम्हार जब बर्तन बनाने के लिए मिट्टी को रौंद रहा था तो मिट्टी कुम्हार से कहती है कि तू मुझे रौंद रहा है ।एक दिन ऐसा आएगा जब तू इसी मिट्टी में विलीन हो जायेगा और मै तुझे रौंदूंगी ।

[14]

माला फेरत जुग भया, फिरा मनका फेर
कर का मन का  डार दे, मन का मनका फेर ।।

अर्थ : लोग सदियो तक मन की शांति के लिए माला हाथ में लेकर भगवान का नाम जपते है । लेकिन फिर भी उनका मन शांत नही होता । कबीरदास जी कहते है कि माला को जप कर मन में शांति ढूँढने के बजाय  अपने मन में शुद्ध विचार भरो , मन के मोतियों  को बदलो अर्थात सद्द्विचार ग्रहण करो। बेकार के पाखण्ड से दूर रहो ।

[15]

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ ख़जूर
पंछी को छाया नही फल लागे अति दूर ।।

अर्थ : ख़जूर के पेड़ के समान बड़े होने से क्या लाभ , जो न ठीक से किसी को छांव दे पाता है और न ही उसके फल आसानी से उपलब्ध हो पाते है । उनके अनुसार ऐसे बड़े होने का क्या फ़ायदा जब वो किसी की सहायता न करता हो या  फिर उसके अंदर इंसानियत न  हो ।

[16]

धीरेधीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय
माली सींचे सौ घड़ा, रितु आये फल होय ।।

अर्थ ; मन में धीरज रखने से सब काम होता है । यदि कोई माली पेड़ को सौ घड़े सींचने लगें ,तब भी फल तो अपने ऋतु  (समय ) के अनुसार ही आएगा ।

[17]

साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सारसार को गहि रहै, थोथा दे उड़ाय ।।

अर्थ : इस संसार में ऐसे सज्जनों की आवश्यकता है ,जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है ।जो साफ़ सुथरी चीजों को बचा लेता है और बेकार चीजों को उड़ा देते है ।

[18]

जाति  पूछो साधु की,पूछ लीजिये ज्ञान
मोल करो तरवार का , पड़ा रहन दो म्यान ।।

अर्थ: सज्जन पुरुष की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए । जिस प्रकार तलवार का मूल्य होता है न की उसमें रखने वाली म्यान का ।

[19]

गुरु गोविंद दोउ खड़े काको लागूं पाय
बलिहारी गुरु आपने, गोविंन्द दियो बताय ।।

अर्थ:हमारे सामने गुरु और ईश्वर दोनों एक साथ खड़े है तो आप किसके चरणस्पर्श करेगे ।गुरु ने अपने ज्ञान के द्वारा हमे ईश्वर से मिलने का रास्ता बताया है ।इसलिए गुरु की महिमा ईश्वर से भी ऊपर है ।अतः हमे गुरु का चरणस्पर्श करना चाहिए ।

[20]

पानी कर बुदबुदा, अस मानुस की जात।
एक दिन छिप जायेगा, ज्यो तारा प्रभात ।।

अर्थ :जैसे पानी का बुलबुला कुछ ही पलो में नष्ट हो जाता है ,उसी प्रकार मनुष्य का शरीर भी क्षणभंगुर है । जैसे सुबह होते ही तारे छिप जाते है । वैसे ही शरीर भी एक दिन नष्ट हो जायेगा ।

[21]

करता रहा सो क्यों रहा,अब करी क्यों पछताय
बोया पेड़ बबुल का, अमुआ कहा से पाये ।।

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि जब  तू बुरे कार्यो को करता था ,संतो के समझाने से भी नही समझ पाया तो अब क्यों पछता रहा है ।जब तूने काँटों वाले बबुल का पेड़ बोया है तो बबूल ही उत्पन्न होंगे ।आम कहाँ से मिलेगा । अर्थात जो मनुष्य जैसा कर्म करता है बदले में उसको वैसा ही परिणाम मिलता है ।

[22]

कस्तूरी कुंडल बसे,मृग ढूँढत बन माही।
ज्योज्यो घटघट राम है,दुनिया देखें नाही ।।

अर्थ : कबीर दास (Kabir) जी ईश्वर की महत्ता बताते हुये कहते है कि कस्तूरी हिरण की नाभि में होता है ,लेकिन इससे वो अनजान हिरन उसके सुगन्ध के कारण पूरे जगत में  ढूँढता फिरता है ।ठीक इसी प्रकार से ईश्वर भी प्रत्येक मनुष्य  के ह्रदय में निवास करते है ,परन्तु मनुष्य इसें नही देख पाता । वह ईश्वर को मंदिर ,मस्जिद, और तीर्थस्थानों में ढूँढता रहता है ।

[23]

तू तू करता तू भया ,मुझमे रही हूँ
बारी फेरी बलि गई, जित देखू तित तू ।।

अर्थ :  मुझमें अहं भाव समाप्त हो गया है। मै पूर्ण रुप से तेरे ऊपर न्योछावर हो गया हूँ ।अब जिधर देखता हूँ उधर तू ही तू दिखायी देता है और सारा जगत ब्रह्ममय हो गया है ।

[24]

जिन खोज तिन पाइए , गहरे पानी पैठ
मै बपुरा बूडन डरा , रहा किनारे बैठ ।।

अर्थ : जीवन में जो लोग हमेशा प्रयत्नशील रहते है । उन्हें सफलता अवश्य मिलती है ।जैसे कोई गोताखोर

गहरे पानी में जाता है तो कुछ न कुछ पा ही जाता है । लेकिन कुछ लोग गहरे पानी में डूबने के डर से किनारे  ही बैठे रहते है अर्थात असफल होने के डर से मेहनत नही करते ।

[25]

तिनका कहु ना निंदिये ,जो पवन तर होय
कभू उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय ।।

अर्थ : छोटी से छोटी चीज की कभी निंदा नही करनी चाहिए । क्योकि वक्त आने पर छोटी चीज भी बड़े काम की हो सकती है । ठीक वैसे ही जैसे एक तिनका पैरो तले कुचल जाता है, लेकिन आँधी चलने पर वही तिनका आँखों में पड़ जाये तो बहुत तकलीफ देता है ।

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