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Story of Parshuram In Hindi : परशुराम की कहानी :


परशुराम
परशुराम

परशुराम एक ब्राह्णण थे । वे शस्त्र और शास्त्र के महान गुरु थे । क्षत्रिय न होते हुए भी उनके अंदर क्षत्रिय के गुण थे । रामायण, महाभारत और कल्कि पुराण में उनका उल्लेख मिलता है । गुरु परशुराम भगवान विष्णु के छठवें अवतार है । प्रारम्भ में उनका नाम राम था। लेकिन भगवान शिव ने उन्हें एक (फरसा ) परशु दिया था, जिसके कारण उनका नाम परशुराम पड़ा ।
भीष्म पितामह,गुरु द्रोण, दानवीर कर्ण जैसे महायोद्धा उनके शिष्य थे । परशुराम को भारद्वाज और कश्यप गोत्र के कुलगुरु भी मानते है । वे तपस्वी और तेजस्वी थे । उनको अमरता का वरदान भी प्राप्त था ।


जन्म और शिक्षा :

महर्षि जमदग्नि द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करने पर देवराज इंद्र के वरदान स्वरूप रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को परशुराम का जन्म हुआ । इस दिन परशुराम जयंती के रूप में मनाया जाता है।
परशुराम की प्रारंभिक शिक्षा ऋषी विश्वामित्र और ऋचीक के आश्रम में हुयी । बचपन से ही वे पशु पक्षियों की भाषा समझते थे । उनके स्पर्श मात्र से कोई भी पशु उनके मित्र हो जाया करते थे ।

अनेक ऋषि मुनियो ने उन्हें अपने अस्त्र और शस्त्र प्रदान किये। ऋषि ऋचीक से उन्हें सारंग नामक दिव्य वैष्णव धनुष प्राप्त था । ब्रह्मऋषि कश्यप से उन्हें अविनाशी वैष्णवी मंत्र प्राप्त हुआ था ।
परशुराम ने कैलाश गिरि श्रंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त की । दिव्यास्त्र विदयुदभी नामक परशु (फरसा) प्राप्त किया था । शिव जी ने श्री कृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच स्तवराज स्तोत्र मंत्र कल्पतरु प्राप्त किया । शिव जी से उन्होंने अन्य अनेक प्रकार के दिव्य अस्त्र प्राप्त किये थे । उन्होंने सबसे कठिन युद्धकला ‘कलरीपायट्टु’ की शिक्षा शिवजी से प्राप्त किया । ‘विजय ‘नाम का धनुष भी शिव से ही प्राप्त हुआ था।


चक्र तीर्थ में किये तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरांत कल्पन्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक में होने का वर दिया । इनको रामभद्र,भार्गव, भृगपति, जमदग्न्य के नामों से भी जाना जाता है । भगवान परशुनाथ ने अपने तीर से समुंद्र को सोख कर कोकण गोवा और केरल क्षेत्र बसाया।

गुरु परशुराम की  कहानियाँ रोचक और उनकी वीरता और उनके अदम्य साहस परिचय देती है ।

पिता के कहने पर माँ का वध  :

एक बार परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि अपनी पत्नी रेणुका से क्रोधित हो गए । उनके मां घड़े को लेकर पानी भरने नदी के किनारे गयी । किसी कारण कुछ देवताओ के आने से रेणुका को आने में देर हो गयी । वह उनको देखने लगी । जब ऋषि जमदग्नि को यह बात पता चली तो वे अधिक क्रोधित हुए ।

उन्होंने अपने पांचो पुत्रो से रेणुका को मारने का आदेश दिया । सभी पुत्र डर गए लेकिन परशुराम ने माता रेणुका का सिर धड़ से अलग कर दिया ।साथ ही अपने भाइयों को भी मार डाला । इससे ऋषि जमदग्नि अत्यंत प्रसन्न हुए । उन्होंने परशुराम से वरदान मांगने को कहा । परशुराम ने अपने भाइयों और माता रेणुका को जीवित करने का वर मांग लिया । इस प्रकार अपनी सूझ बूझ और प्रेमवश  अपनी माता और भाइयों को पुनः जीवित करवाया ।

हैहयवंशी क्षत्रिय का विनाश :

हैहयवंश में कार्तवीर्य अर्जुन बड़ा ही प्रतापी राजा था ।उसने अपने गुरु दत्तात्रेय को प्रसन्न करके वरदान के रूप में उनसे हजार भुजायें प्राप्त की । हजार भुजाओं के कारण ही उसे सहस्त्रबाहु के नाम से भी जाना जाता है । उसे अपने वैभव और शक्ति का बहुत घमंड था । उसे कई सिध्दियां भी प्राप्त थी । लंकाधिपति रावण को भी उसने बंदी बना लिया था ।

एक बार राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन शिकार खेलते हुए जमदग्नि के आश्रम में पहुंच गए । ऋषि जमदग्नि उनका बहुत आदर सत्कार किया । ऋषि के पास कामधेनु गाय थी । उसी गाय के गोरस के भंडार से ही ऋषि जमदग्नि ने सबको अच्छी तरह से आवभगत किया । सहस्त्रबाहु ने जब यह सब देखा तो कामधेनु गाय उनको पसंद आ गयी ।  वे बलपूर्वक गाय को आश्रम से ले गए । परशुराम को जब यह बात पता चली तो अपने पिता के आत्मसम्मान की रक्षा के लिए उन्होंने राजा सहस्त्रबाहु से कामधेनु वापस लेने गए । राजा सहस्त्रबाहु और गुरु परशुराम ने युद्ध किया और उसे मार डाला । इसके बाद सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने प्रतिशोध स्वरूप ,जब परशुराम अनुपस्थित थे .उनके पिता जमदग्नि को मार डाला ।

इससे विचलित होकर उनकी माता रेणुका भी जमदग्नि के साथ सती हो गयी । इस घटना से गुरु परशुराम अत्यधिक क्रोधित हुए । उन्होंने यह प्रतिज्ञा किया कि हैहयवंश के सभी क्षत्रियों का नाश करके ही दम लूंगा । इन्होंने सबसे पहले महिष्मती नगरी में अधिकार प्राप्त किया और  उन्होंने सहस्त्रबाहु के सभी पुत्रो और उनके साथ देने वाले सभी क्षत्रिओं का नाश किया। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने पृथ्वी पर  21 बार  क्षत्रिओं का विनाश किया। महर्षि ऋचीक ने उन्हें रोका ।  इसके बाद परशुराम जी ने अश्वमेध यज्ञ किया।  पृथ्वी को ब्राम्हणो को दान कर दिया और अपने अस्त्र और शास्त्र इंद्र को देकर, वे महेंद्रपर्वत के आश्रम में रहने लगे।

श्री गणेश के एक दांत तोड़ना :

 गुरु परशुराम कैलाश पर्वत पर अपने आराध्य गुरु  भगवान् शंकर  के अन्तपुर में मिलने के लिए गए। लेकिन प्रवेश द्वार पर श्री गणेश  द्वारा रोके जाने पर परशुराम से उनका वाद विवाद हो गया। गणपति ने अपनी सूड़ से भूतल में उनको पटक दिया।  जिससे अचेत हो गए।  चेतनावस्था में आने पर उन्होंने अपने परशु (फरसे) से गणेश जी पर वार किया।  जिससे उनका एक दांत टूट गया। इससे क्रोधित होकर माता पार्वती  परशुराम पर त्रिशूल चलाने के लिए उद्यत  हो गयी  थी।  लेकिन भगवान शिव के हस्तक्षेप से  माता पार्वती के गुस्से को शांत किया गया।  इसके बाद श्री गणेश जी एकदन्त के नाम से प्रसिद्ध हुए ।

  लक्ष्मण से विवाद और राम से मिलन :

 त्रेतायुग मे सीता जी के स्वयंबर के अवसर पर श्री रामचंद्र जी  ने जब शिव जी का धनुष तोड़ा  तो आकाश में  गर्जना हुयी  । गुरु परशुराम मिथला में प्रकट होते है। उनको लगा  कि   किसी  क्षत्रिय में फिर कोई अनहोनी किया। शिव जी उनके आराध्य देव है वे बहुत क्रोधित होकर लक्ष्मण से वाद विवाद करते है।
‘वे राम से कहते है कि ‘सुनहु राम जो शिव धनु तोरा . सहसबाहु सम सो रिपु मोरा ‘
बाद में उन्हें  श्री रामचंद्र जी की वास्तविकता का पता चलता है।  वे श्रीराम की परीक्षा लेते है। उन्हें अपना धनुष देकर उसकी प्रत्यंचा चढ़ाने को कहते है , श्री राम यह कार्य कर देते है।  परशुराम को यह पता  चल जाता है कि  श्रीराम विष्णु केही अवतार हैइसप्रकार उनको नमन करके वे वन की ओर प्रस्थान कर जाते है।

भीष्म पितामह से युद्ध :

गंगा पुत्र भीष्म ने अपने पिता के विवाह के लिए अम्बा और अम्बालिका को हरण करके हस्तिनापुर आये थे।  अम्बालिका ने तो भीष्म के  पिता को स्वीकार कर लिया था।  लेकिन अम्बा किसी और को चाहती थी।  भीष्म को यह बात अम्बा ने बाद में  बतायी ।  अतः भीष्म ने अम्बा को छोड़ दिया।  लेकिन अम्बा के प्रेमी ने उसको स्वीकार नहीं किया।  अम्बा लौटकर फिर  भीष्म के पास आयी और  भीष्म से विवाह  करने  की इक्छा जताई ।  लेकिन गंगा पुत्र भीष्म ने तो विवाह न करने की प्रतिज्ञा ली थी।

अतः उन्होंने मना कर दिया। भीष्म द्वारा स्वीकार ना किये जाने के कारण  क्षुब्ध होकर अम्बा प्रतिशोध वश मदद मांगने के लिए गुरु परशुराम के पास गयी । अम्बा की सहायता का आश्वासन देकर वे गंगा पुत्र भीष्म को ललकारते है। भीष्म के साथ उनका युद्ध 23 दिन तक चलता है।  लेकिन भीष्म के पिता ने  उनको  इक्छा -मृत्यु  का वरदान दिया था जिसके कारण  वे उन्हें हरा न सके।

कर्ण को श्राप :

गुरु परशुराम  सिर्फ ब्राह्मणो को ही अपना शिष्य बनाते थे।  कर्ण  को जब यह पता  चला  तो उन्होंने अपने आप को ब्राह्मण बता कर शास्त्र और शस्त्र की शिक्षा ग्रहण किया। लेकिन एक घटना से परशुराम जी कर्ण के वास्तविक रुप को  पहचान गए की कर्ण  ब्राह्मण नहीं है। अतः आवेश में आकर उन्होंने कर्ण को श्राप दे दिया की जब भी तुम्हे मेरी विद्या की जरुरत होगी लूम भूल जाओगे। हालस्की बाद में उनको ग्लानि हुयी और उन्होंने कारण को अपना धनुष दिया था। महाभारत के युद्ध में  अर्जुन से युद्ध करते समय ब्रह्मास्त्र चलना भूल गए।  जिसके फलस्वरुप अर्जुन द्वारा वीरगति को प्राप्त हुए ।

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भगवान परशुराम का महत्व :

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वे आज भी मंदराचल पर्वत पर तपस्यारत है । शैव  दर्शन में उनका उल्लेख सबसे ज्यादा मिलता है । अपने साधकों और भक्तोँ को आज भी वे दर्शन देते है । ज्योतिष  शास्त्र  के अनुसार भगवान् परशुराम की साधना करने से  धन धान्य और ज्ञान का अर्जन करने वाला और हर प्रकार से सम्पन्न और साहसी होता है। उनका गायत्री जाप करने से भगवान् परशुराम का आशीर्वाद प्राप्त होता है उनका गायत्री मन्त्र जाप निम्न प्रकार है  :
“ॐ ब्रह्म क्षात्रय विद्यहे क्षत्रियान्ताय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात ।।
ॐ जामदग्न्याय विद्यहे महावीराय धीमहि तन्नो परशुरामः प्रचोदयात ।।
ॐ रां रां ॐ रां रां परशु हस्ताय नमः ।।”

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अगर आपको भगवान परशुराम की कहानी पसंद आयी तो कमेंट अवश्य करे ।आपका कमेंट मुझे अच्छे लेख लिखने को प्रेरित करते है ।


2 thoughts on “Story of Parshuram In Hindi : परशुराम की कहानी :

  • Anshu Srivastava

    Bahut achi jankari mila.Poora pashuram ji ki jeewani ha isme Jo bahut kuch hum logo ko nhi malum tha . Thank you

    Reply

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