Veer Savarkar 10 Quotes in hindi : वीर सावरकर के 10 अनमोल विचार :


वीर सावरकर
वीर सावरकर

वीर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के  मुख्य स्वतंत्रता सेनानी  और  राष्ट्रवादी नेता थे। उन्होंने हिन्दू राष्ट्र की विचारधारा को विकसित किया।  जातिभेद और  छुआछूत  का उन्होंने विरोध किया। वीर सावरकर पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने लन्दन में क्रांतिकारी  आंदोलन को संगठित किया। अपने क्रांतिकारी  विचारो के कारण ही उन्हें अपनी बैरिस्टर की डिग्री खोनी पड़ी । उन्होंने अंग्रेजो से पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की। नेता जी सुभाष चंद्र बोस उनसे बहुत प्रभावित थे ।


1.

“महान हिंदू संस्कृति के भव्य मंदिर को आज तक पुनीत रखा है -संस्कृत ने । इसी भाषा में हमारा संपूर्ण ज्ञान ,सर्वोत्तम तथ्य संग्रहीत है । एक राष्ट्र ,एक जाति,और एक संस्कृति के आधार पर ही हम हिंदुओं की एकता आश्रित और आघ्रत है ।”

– वीर सावरकर


2.

“महान लक्ष्य के लिए किया गया कोई भी बलिदान व्यर्थ नही जाता है ।”

3.

“कष्ट ही तो वह प्रेरक शक्ति है । जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और आगे बढ़ाती है ।”

– वीर सावरकर


4.
“हमारे देश और समाज के माथे पर एक कलंक है – अस्पर्शयता । हिन्दू समाज के ,धर्म के,राष्ट्र के, करोड़ो हिंदू बंधु इससे अभिशक्त है । जबतक हम ऐसे बनाये हुए है,तब तक हमारे शत्रु हमे परस्पर लड़वाकर विभाजित करके सफल होते रहेंगे । इस घातक बुराई को हमे त्यागना ही होगा ।”

5.
“हमारी पीढ़ी ऐसे समय मे और ऐसे देश मे पैदा हुयी कि  प्रत्येक उदार एवं सच्चे ह्रदय के लिए यह बात आवश्यक हो गई कि वह अपने लिए उस मार्ग का चयन करें जो आहों, सिसकियों और विरह केमध्य से होकर गुजरता है ।बस यही मार्ग कर्म का मार्ग है ।”

– वीर सावरकर

6.
“काल स्वंय मुझ से डरा है, मैं काल से नही ।
काले पानी का कालकूट पीकर
काल से कराल स्तंभों को झकजोर कर मैं बार बार लौट आया हूँ ।
हारी मृत्यु है , मैं नही ।”

– वीर सावरकर

7.
“अपने देश की, राष्ट्र की,समाज की स्वतंत्रता हेतु प्रभु से की गई मूक प्रार्थना भी सबसे बड़ी अहिंसा का धोतक है ।”

– वीर सावरकर

8.

“देशहित के लिए अन्य त्यागों के साथ जनप्रियता का त्याग करना सबसे बड़ा और ऊंचा आदर्श है ,क्योकि  “वर जनहित ध्येयं केवल न जनस्तुति “शास्त्रों में उपयुक्त ही कहा गया है ।”

– वीर सावरकर

9.
“इतिहास समाज और राष्ट्र को पुष्ट करनेवाला हमारा दैनिक व्यवहार ही हमारा धर्म है ।धर्म की यह परिभाषा स्पष्ट करती है कि कोई भी मंनुष्य धर्मातीत रह ही नही सकता । देश इतिहास समाज के प्रति विशुद्ध प्रेम एवं न्यायपूर्ण व्यवहार ही सच्चा धर्म है ।”

– वीर सावरकर

10.
“प्रतिशोध की भट्टी को तपाने के लिए विरोधों और अन्याय ला ईंधन अपेक्षित है । तभी तो उसमें से सद्गुणों के कण चमकने लगेंगे ।इसका मुख्य कारण है कि प्रत्येक वस्तु अपने विरोधी तत्व से रगड़ खाकर ही स्फुलित हो उठती हैI ।”

– वीर सावरकर

अपने सुझाव अवश्य  शेयर करे। आपके कमेंट्स मुझे अच्छे लेख लिखने को प्रेरित करते है .

इसे भी पढ़े :

 आजादी की कहानी ( Story Of Freedom In Hindi )


Leave a Reply

x
%d bloggers like this: