Chhath Parv ka mahatva : छट पर्व का महत्व :


छट पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्टी को मनाया जाता है । दीपावली के छठे दिन यह सूर्य उपासना का अभूतपूर्व लोकपर्व है । पूर्वी भारत के बिहार ,झारखंड,पूर्वी उत्तर प्रदेश,और नेपाल में मुख्य रूप से मनाया जाता  है। इसके महत्व और लोकप्रियता को देखते हुए यह  पूरे देश और विदेशों में भी मनाया जाने लगा है । कुछ मुस्लिम भी इस त्योहार बड़ी श्रद्धा पूर्वक मनाते है । इसको आठ नामो से जाना जाता है : छट, छटी माई के पूजा,छट पूजा,डाला छट, सूर्य षष्टी । छट पर्व साल भर में दो बार चैत्र और कार्तिक माह में  मनाया जाता है । छट के समान अन्य पर्वो में ललही छट, चैती छट और हरछठ है ।


क्यो मनाते है:

पारिवारिक सुख और मनोवांछित कामनाओं के पूर्ण होने के उद्देश्ये से यह पर्व मनाया जाता है । ऐसी मान्यता है कि महिलाये संतान प्राप्ति के लिए के लिए व्रत रखती है और पुरुष अपने कार्यो की सफलता हेतु यह व्रत रखते है।

छट पर्व
छट पर्व

कथाएं :

इस पर्व के बारे में वेद और पुराण में अनेक कथाओ का उल्लेख  मिलता  है : राजा प्रियबिद को कोई संतान नही थी। महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई खीर दी । उनके प्रभाव से पुत्र की प्राप्ति हुई । लेकिन यह पुत्र मृत उत्पन्न हुआ । पुत्र वियोग में राजा प्राण त्यागने लगते है । तभी ब्रम्हा जी की मानस कन्या देवसेना प्रगट होकर यह बताती है कि ‘सृष्टि मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्टी कहलाती हूँ । हे राजन ! आप मेरी पूजा करे और लोगो को भी पूजा करने के लिए प्रेरित करे ।’ राजा ने पुत्र इक्छा से देवी षष्टी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुयी । यह घटना कार्तिक षष्टी तिथि को ही घटित हुई ।


लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के लिए कार्तिक शुक्ल की षष्टी को भगवान राम और सीता ने उपवास किया था । सूर्यदेव की आराधना कर उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया था ।

जब पांडव अपना सारा राजपाठ जुए में हार गए । तब द्रौपदी ने श्रीकृष्ण द्वारा बताए मार्ग से षष्टी का व्रत रखा । जिससे उनको पुनः राजकाज मिल गया ।उनकी मनोकामनाये पूरी हुई ।

महाभारत के अंगप्रदेश के राजा कर्ण सूर्योपासना अर्ध्य प्रतिदिन नदी के किनारे कमर तक  घण्टो पानी मे खड़े रहकर करते थे । अंगप्रदेश आज भागलपुर (बिहार) के नाम से जाना जाता है । उसी से प्रेरित होकर छट में पानी में खड़े रहकर सूर्य की उपासना करने की परंपरा का आरम्भ हुआ ।

कैसे मनाते है :

यह चार दिवसीय उत्सव होता है जिसमे व्रती 36 घण्टे निर्जला व्रत रखते है : यह कार्तिक शुक्ल की चतुर्थी से लेकर सप्तमी तक चलता है । इसमे सुखद शैय्या वर्जित होती है । एक कम्बल या चादर में फर्श पर ही रात बितानी होती है । नए कपड़े पहनते है । महिलाये साड़ी और पुरुष धोती पहनते है । यह व्रत शुरू करने के बाद कई साल इसको किया जाता है । घर मे किसी की मृत्यु होने पर यह त्योहार नही मनाया जाता है ।

नहाय खाय :

सबसे पहले घर की सफाई कर पवित्र किया जाता है । इसके पश्चात छटव्रती स्नान कर पवित्र शुद्ध शाकाहारी भोजन के रूप में कद्दू ,चने की दाल, और चावल ग्रहण करते है ।

लोहांडा और खरना :

कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिनभर उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते है । इसे खरना कहते है । खरना प्रसाद लेने के लिए आसपास के सभी लोगो को बुलाया जाता है । प्रसाद के रूप में गन्ने के रस के साथ,चावल की खीर के साथ दूध ,चावल का पिट्ठा और और घी चुपड़ी रोटी  होती है । इसमें नमक और चीनी का प्रयोग नही किया जाता है ।

सांध्य अर्ध्य :

तीसरे दिन  कार्तिक शुक्ल षष्टी को दिन में छट का प्रसाद बनाया जाता है । प्रसाद के रुप मे टेकुआ या टिकरी ,चावल के लड्डूआ चढ़ावा के रूप में ,साँचा और फल भी छट प्रसाद में शामिल होता है ।बॉस की टोकरी में अर्ध्य का सूप सजाया जाता है ।साथ ही व्रती के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग घाट की ओर चलते है । छटी मैया के गीत गाते है और भक्ति भाव से उनका स्मरण करते है। सभी छटव्रती उस तालाब या नदी के किनारे सामूहिक रूप से अर्ध्य दान सम्पन्न करते है । सूर्य को जल और दूध का अर्ध्य दिया जाता है । छठी मैया की प्रसाद भरे सूप की पूजा की जाती है । इस दौरान दृश्य मेले जैसा हो जाता है

उषा अर्ध्य :

कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदित होते सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है । व्रती वही इकट्ठा होते है और पुनः पिछले शाम की पुनरावृत्ति होती है । व्रती वापस आकर गाँव के पीपल के पेड़ जिसको ब्रह्मा बाबा कहते है। उनकी पूजा की जाती है । पूजा के साथ कच्चे दूध का शर्बत पीकर थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते है । जिसे पारण या परना कहते है ।

महत्व :

छट उत्सव सादगी और सच्ची पवित्रता के साथ मनाया जाने का पर्व है । यह एक प्रकार की तपस्या का ही रूप होता है । इस व्रत को महिलाये और पुरुष  दोनो कर सकते है । वैदिक काल से ही सूर्य परम्परा का उल्लेख मिलता है । सूर्यदेव को आरोग्य देवता भी मानते है । इसमें कई रोगों को नष्ट करने के गुण होते है । भगवान कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ट रोग हो गया था । इससे मुक्त के लिए विशेष सूर्योपासना की गयी थी । वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यह उचित है ।
सूर्य की शक्ति का मुख्य स्रोत उनकी पत्नी उषा और प्रत्युषा है । अतः छट पर्व में सूर्य के साथ ही साथ दोनो शक्तियों की पूजा की जाती है । प्रातःकाल उषा और सायंकाल की अंतिम किरण प्रत्युषा को अर्ध्य देकर नमन किया जाता है ।

यह त्योहार जनसाधारण के द्वारा उनके रीति रिवाज की उपासना पद्दति पर आधारित है । इस उत्सव के ऊपर जनता किसी के ऊपर निर्भर नही होती स्वयं सामूहिक अभियान के द्वारा तालाब नदी का चुनाव और अर्ध्यदान की व्यवस्था करते है । बॉस से निर्मित सूप , टोकरी, मिट्टी के बर्तन,गन्ने का रस ,गुड़,चावल और गेहूँ से निर्मित प्रसाद और उसके साथ लोकगीतों की मधुर मिठास मन को मोह लेती है ।
इसके विभिन्न अवसरों पर गाया जाने वाला लोकगीत जैसे ‘उगी हे  दीनानाथ’ सूर्य आराधना का पहला गीत है । जिसको you tube में 1 करोड़ से ज्यादा बार देखा गया है । ‘केलवा के पात पर’ 47 लाख views है । इसके अतिरिक्त  ‘कांच के बॉस की बहंगिया’, मारवो रे सुगवा ,’ हे छटी मईया ‘जैसे गीतों को शारदा सिन्हा ,अनुराधा पोडवाल और मालनी अवस्थी ने अपने सुरो से बहुत ही खूबसूरत ढंग से बांधा है ।
भक्ति और श्रद्धा का ऐसा अद्भुत रुप किसी भी त्योहार में नही दिखाई पड़ता । इन सबका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है ,जब सूर्यपासना के साथ ही पर्यावरण ,स्वच्छता और मानव एकता का अनूठा साम्य देखने को मिलता है ।

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आप सभी को छट पर्व की बहुत शुभकामनाओ के साथ ।


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