हीर -रांझा की प्रेम कहानी : Love Story of Heer Ranjha in Hindi
जब भी सच्ची मोहब्बत का जिक्र होता है तो सबसे पहले हीर -रांझा का नाम आता है । जिन्होंने मोहब्बत में अपने आप को कुर्बान कर दिया । हीर रांझा की प्रेम कहानी सदियों पुरानी है ।
चिनाव नदी के किनारे तख्त हजारा गांव के मुखिया और जमींदार मैजू के चार बेटे थे । उनमें सबसे छोटे बेटे का नाम रांझा था । मुखिया को रांझा अपने सभी बेटो में सबसे प्यारा था । रांझा बाँसुरी बहुत अच्छी बजाता था। उसका काम मे मन नही लगता था । इसलिए उसके भाई उससे नफरत करते थे । अतः अपने भाइयों और भाभियों से रांझा की नही बनी। कुछ दिनों के बाद रांझा ने घर छोड़ दिया ।
हीर के पिता एक बहुत बड़े सौदागर थे । सियाल जनजाति में हीर का जन्म झंग गांव पंजाब प्रान्त में हुआ था । वह बहुत ही खूबसूरत थी । जब हीर ने जवान नवयुवक को बाँसुरी बजाते हुए देखा तो उसे अपना दिल दे बैठी । राँझा भी हीर की सुंदरता से आकर्षित हुए बिना न रह सका। दोनों मन ही मन एक दूसरे को चाहने लगे। हीर ने अपने पिता से कह कर अपने मवेशी की देखरेख करने के लिए काम पर लगवा दिया । अब तो हीर और रांझा एक दूसरे से चोरी -छुपे मिलने लगे । प्यार और मोहब्बत की बातो के साथ ही वे एक दूसरे में खो जाते । लेकिन कहते है न इश्क और हुस्न छिपाये नही छिपते । हीर के चाचा कैदो ने इन दोनों को मिलते हुए देख लिया । उसने सारी जानकारी हीर की माँ मलिकी और पिता चूचक को बता दी ।
हीर के माँ बाप बहुत नाराज़ हुए। इसके बाद हीर के माता पिता ने हीर की शादी सदाखेड़ा नामक युवक से हीर की मर्जी के खिलाफ जबरदस्ती करवा दी ।
रांझा हीर की शादी को देखते हुए दुःखी मन से इधर उधर भटकने लगा । कुछ दिनों के बाद वह कनफटे समुदाय के फकीर से गुरु दक्षिणा लेकर फकीर बन गया । वह गाँव -गाँव भ्रमण करने लगा और गीत गाता ।
एक दिन रांझा अचानक हीर के ससुराल पहुंच जाता है । वहां उसकी मुलाक़ात हीर से हो जाती है । वे दोनों भागने की योजना बनाते है । लेकिन वहाँ के स्थानीय राजा द्वारा पकड़ लिए जाते है । उनको राजा के समक्ष इम्तिहान देना पड़ता है । राजा को उनकी सच्ची मोहब्बत का अहसास होता है । राजा हीर और रांझा के विवाह की अनुमति दे देता है ।
लेकिन हीर के चाचा उनकी खुशी देख नही पाते। वह हीर के खाने में जहर मिला देता है ।
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जब यह बात रांझा को पता चलती है तो वह भागा हुआ हीर के पास आता है । लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है । हीर की मौत हो जाती है । इसके बाद रांझा भी वही जहर वाला खाना खा कर ख़ुदकुशी कर लेता है । इस कहानी का अंत भी दुःखद होता है ।
हीर रांझा की मजार झंग जो अब पाकिस्तान में है । वहां आज भी लाखों प्रेमी प्रेमिका अपने मन मे सुखी जीवन की कामना के लिए वहां जाते है ।
हीर -रांझा पर फिल्म
पंजाबी लेखक और कवि वारिसशाह की कहानी पर आधारित हीर रांझा फिल्म 1970 मे बनी। जो काफी प्रसिद्ध हुयी। इस फिल्म के डायरेक्टर चेतन आनंद थे। फिल्म के हीरो चर्चित अभिनेता राजकुमार थे। इस फिल्म को 1971 के फिल्म फेयर अवार्ड से भी नवाज़ा गया।
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Bahut sundar sabdho m darsaya gya hai.
Thanks.