Lal Bahadur Shastri Stories|लाल बहादुर शास्त्री की प्रेरणादायक कहानियाँ |


Lal Bahadur Shastri स्वतंत्रता सेनानी और देश के द्वितीय प्रधानमंत्री थे। गाँधी जी के विचारो से वे काफी प्रभावित थे। वे आम आदमी के समान ही अपने को समझते थे । इसलिए जनता में वे काफी लोकप्रिय थे । वे जो कहते थे ,वही करते भी थे । स्वाभिमान ,सत्चरित्र ,अनुशासन, ईमानदारी और देश प्रेम उनके प्रमुख गुण थे । उनके जीवन पर आधारित कई प्रेणादायक कहानियाँ काफी प्रसिद्ध है । 


पुस्तक के लिए पैसे :

Lal Bahadur Shastri जी के बचपन  में ही उनके पिता का निधन हो गया था। उनकी आर्थिक  दशा अच्छी नहीं थी। लाल बहादुर किताबे नहीं खरीद पाए। कक्षा में अध्यापक ने यह घोषणा कर दी कि  ‘जो भी पुस्तक नहीं लाएगा वह कक्षा में नहीं बैठेगा।’ लाल बहादुर शास्त्री ने अपने दोस्त से किताब मांगी  और कहा  कि  ‘वह  कल पुस्तक वापस कर देगा ‘ और रात भर उस पुस्तक को अक्षरतः अपने कॉपी में लिख डाला। अगले दिन अध्यापक ने देखा कि उनकी कापी  पुस्तक की तरह ही वैसे ही लिखी गयी है। अध्यापक ने लाल बहादुर से पूछा ऐसा क्यों किया।  बालक ने उत्तर दिया कि ‘ हमारे पिता जी नहीं है, मेरे पास इतना पैसा नहीं है कि पुस्तक खरीद सके।’ अध्यापक के आँख में आँसू  आ गये और उन्होंने  लाल बहादुर को आशीर्वाद दिया कि वह भविष्य में सफल हों।  

नदी पार करके घर पहुँचे :

बचपन में शास्त्री जी अपने दोस्तों के साथ मेला  देखने गए। वापस घर लौटते समय उनके पास पैसे नहीं बचे। रास्ते  में गंगा  नदी पड़ती थी। दोस्तों से  पैसे मांगना, उन्होंने उचित नहीं समझा। नाव वाला उनको जानता  था।  उसने कहा , ‘पैसे कल दे देना।’  लेकिन उन्होंने सोचा कल पता नहीं पैसे हो या न हो।  उन्होंने अपने दोस्तों और नाववाले को जाने को कह दिया । गंगानदी भी अपने उफान पर थी । बाद में वे स्वयं नदी पार करके घर लौटे । ऐसे थे स्वाभिमानी लाल बहादुर शास्त्री ।


Shastri जी स्कूल छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े :

वर्ष 1921  में वाराणसी में महात्मा गाँधी और मदन मोहन मालवीय के एक प्रोग्राम में Shastri जी  ने भी हिस्सा लिया।  वे उनसे इतना प्रभावित हुए कि दूसरे दिन ही स्कूल छोड़कर वह कांग्रेस के स्थानीय आफिस में जाकर कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण की और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। कुछ दिनों के बाद अंग्रजो ने उनको गिरफ्तार कर लिया और जेल में डाल  दिया। लेकिन कम उम्र के कारण उन्हें छोड़ दिया गया। बाद में महात्मा गाँधी ने वाराणसी में 10 फरवरी 1921  को काशी  विद्यापीठ की स्थापना की। उनका उद्देश्य था कि स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े युवाओ को शिक्षा देना था।  लालबहादुर ने यहाँ एडमिशन लिया और नैतिक शिक्षा और दर्शनशास्त्र में स्नातक की उपाधि ग्रहण की उनको वहाँ ‘शास्त्री’ का टाइटल मिला जिसको उन्होंने अपने नाम के साथ जोड़ा । 

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50 रुपये प्रतिमाह :

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान  सर्वेंट्स आफ इंडिया सोसायटी की स्थापना की थी । इसका मुख्य उद्देश्य गरीब पृष्ठभूमि वाले स्वतंत्रता सेनानियों की आर्थिक मदद करना था । शास्त्री जी भी उनमे से एक थे । सोसाइटी के ओर से उन्हें हर महीने 50 रुपये मिलते थे । जब वे जेल  में थे तो एक बार उन्होंने चिट्ठी से अपनी पत्नी से पूछा कि पैसे समय पर  मिल रहे है और क्या इससे गुजारा हो जाता है । इस पर उनकी पत्नी का जवाब आया कि वे तो सिर्फ 40 रुपये में ही घर का खर्च चला रही है । बाकी  के 10 रुपये बचा रही है । इसके बाद शास्त्री जी ने तुरंत चिट्टी लिख कर सोसाइटी में बताया कि उनका गुजर 40 रुपये में हो जाता है। वे बाकी के 10 रुपये किसी अन्य जरूरतमंद को दे दिए जाएं ।

एम्स क्रासिंग पर गन्ने का रस :

Lal Bahadur Shastri उस समय ग्रह मंत्री थे । जाने -माने पत्रकार कुलदीप नैयर [प्रेस सचिव] उनके साथ थे । वे कहते है कि एक बार मैं और शास्त्री जी महरौली से एक कार्यक्रम से भाग लेकर लौट रहे थे । एम्स के पास उन दिनों एक क्रासिंग हुआ करती थी । वो उस समय बंद थी । शास्त्री जी ने देखा कि बगल में गन्ने का रस निकाला जा  रहा है । उन्होंने कहा, ‘जब तक फाटक खुलता है क्यों न गन्ने का रस पिया जाए ।’ इससे पहले कोई कुछ कहता खुद दुकान तक गए और गन्ने के रस का सब  के लिये आर्डर कर दिया  । किसी ने उनको पहचाना भी नही यहां तक कि गन्ने के रस वाला भी नही, कोई पहचान भी कैसे सकता है कि देश का ग्रह मंत्री उसकी दुकान में गन्ने का रस पीने आएगा । इस प्रकार कितने खुशदिल इंसान थे लाल बहादुर शास्त्री ।

बेटे का रिपोर्ट कार्ड :

1964 की बात है जब वे भारत के प्रधान मंत्री बने । उनके बेटे अनिल शास्त्री उस समय सेंट कोलम्बस स्कूल ने पढ़ रहे थे । उस समय पेरेंट्स मीटिंग नही हुआ करती थी । लेकिन रिपोर्ट कार्ड लेने के लिए पेरेंट  को बुलाया जाता था ।शास्त्री जी ने निश्चित किया कि वे स्कूल जायेंगे। स्कूल पहुँचने पर वे स्कूल गेट पर ही उतर गए । हालांकि स्कूल गार्ड ने कार स्कूल परिसर में ले जाने को कहा ।
अनिल शास्त्री जी कहते है कि मेरी कक्षा 11- बी पहली मंजिल पर थी । वे खुद चलकर मेरी कक्षा में गये । मेरे क्लास टीचर रेवरेंड टाइनन पिता जी  देख कर चौक गये । उन्होंने कहा, ‘आपको यहाँ आने की  जरूरत नही थी।  आप किसी को भी भेज देते ।’शास्त्री जी ने कहा’ मैं वही कर रहा हूँ ,जो पिछले कई  वर्षो से करता चला आ रहा हूँ ।’ रेवरेंड टाइनन ने कहा,’ लेकिन आप भारत के प्रधानमंत्री है ।’ शास्त्री जी मुस्कुराए और बोले ,’ब्रदर टाइनन मैं प्रधानमंत्री बनने के बाद नही बदला, लेकिन लगता है,आप बदल गए है ।’

महंगी साड़ी मत दिखाओ :

अपने प्रधानमंत्री काल मे ही पत्नी ललिता  शास्त्री के लिए वे एक अच्छी साड़ी  की दुकान में गये । दुकान का   मैनेजर  उन्हें देखकर बहुत खुश हुआ।  शास्त्री जी का आदर सत्कार किया । शास्त्री जी ने उसे साड़ियां दिखाने को कहा , उसने एक से बढ़कर एक साड़ियां दिखाई जो बहुत कीमती थी । शास्त्री जी ने कहा, ‘मुझे इतनी महँगी साड़ी नही कम कीमत वाली साड़ी दिखाओ । ‘ मैनेजर ने कहा ,’सर आप इसे अपना ही समझिए कीमत की कोई बात नही है ।’ हमारा सौभाग्य है कि ‘आप मेरे यहाँ पधारे ।’ शास्त्री जी ने कहा ,मै तो दाम देकर ही साड़ी लूंगा । तब मैनेजर ने सस्ती साड़ियाँ शास्त्री जी जैसा चाहते थे वैसे ही साड़ियां दिखायी । शास्त्री जी अपने मन के मुताबिक साड़ियां ली और उसके पैसे देकर वहाँ स चले गये ।

Lal Bahadur Shastri ने कार खरीदने के लिए लोन लिया :

Lal Bahadur Shastri का जीवन बहुत ही सादगी भरा था ।अपनी तनख्वाह का कुछ हिस्सा  वे सामाजिक कार्यों में खर्च कर देते थे । प्रधान मंत्री बनने के बाद भी उनके यहाँ  कार नही थी । ऐसे में उनके बच्चें उनसे कहते कि अब तो कार होनी चाहिए । शास्त्री जी ने कार खरीदने का मन बनाया ।
अपने बैंक एकाउंट में बैलेंस चेक कराया तो पता चला उनके खाते में सिर्फ 7000/-रुपये है। जबकि उस समय फिएट कार की वैल्यू 12000/- रुपये थी । उन्होंने आम आदमी की तरह ही 5000/- का लोन पंजाब नेशनल बैंक से लिया । शास्त्री जी का एक साल बाद निधन हो गया था । उनके निधन के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने उनकी पत्नी ललिता शास्त्री से लोन माफ करने की पेशकश की । लेकिन ललित शास्त्री नही मानी । वे शास्त्री जी के आदर्शों को धूमिल नही करना चाहती थी । अतः शास्त्री जी के निधन के चार साल बाद तक कार की EM I जाती रही । उन्होंने कार का पूर भुगतान किया । वो कार आज भी दिल्ली के ‘लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल ‘में रखी हुयी  है ।

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नोट :’लाल बहादुर शास्त्री की कहानियाँ ‘आपको यह लेख कैसा लगा।  आप अपने विचार और कमेंट दे ।  


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