Maha Shivratri in hindi : महाशिवरात्रि पर निबंध


Shivratri in hindi : महाशिवरात्रि पर निबंध:


महाशिवरात्रि  हिन्दुओ का एक  पावन पर्व है । यह फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है । सृष्टि का प्रारम्भ इसी दिन से माना जाता है । भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती जी के साथ हुआ था । वैसे तो साल भर में 12 शिवरात्रियां होती है । लेकिन इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है । शिव हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण देवताओ में से एक है । अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरा करते है ।
शिव जी को विपरीत स्थितियों का संगम कहा जा सकता है । जहाँ एक तरफ़ भोलेनाथ के रूप में जानते है तो दूसरी तरफ अपने रौद्र रूप में जाने जाते है । इनको सत्यम ,शिवम्, और सुंदरम के साक्षात् रूप में भी जाना जाता है । ऐसे में कन्याये उनके रूप को अपने पति में पाने की कामना करती है तो पुरुष शिव को एक शक्ति के रुप में स्मरण  करते है । एक ओर योगी के रूप में जाने जाते है तो दूसरी ओर तांत्रिक के जनक के रूप में भी जाने जाते है । उनकी जटाओं में गंगा को धारण करने वाले ,सिर पर चन्द्रमा को सजाने वाले ,मस्तक पर त्रिपुंड तीसरे नेत्र वाले और कंठ में नागराज साथ में रुद्राक्ष की माला , हाथ में डमरू और त्रिशूल है । भक्तगण उन्हें श्रद्धा पूर्वक अनेक नामों से उनकी पूजा अर्चना करते है, जैसे – शिवशंकर भोलेनाथ,महादेव ,भगवान्आशुतोष,महाकाल ,उमापति,गौरीशंकर ,सोमेश्वर ,ओकेश्वर ,बैद्यनाथ ,नीलकंठ ,त्रिपुरारि सदाशिवत्रिदेव,नटराज,आदि ।

कहानी :


समुन्द्रमंथन में जब कालकूट नामक विष बाहर निकला तो देवता गण चिंतित हो गए थे  । शिव जी ने इसी दिन विष को अपने कंठ पर धारण किया था ।

शिव रात्रि के व्रत पर एक और कथा काफी प्रचलित है शिवपुराण में इसका उल्लेख मिलता है :
एक बार शिवभानु नामक एक शिकारी साहूकार का ऋणी था । साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया । यह शिवरात्रि का ही दिन था । शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव के कथायें और धार्मिक बाते सुनता रहा ।शाम को साहूकार ने शिकारी से अपने ऋण चुकाने की बात की  । शिकारी ने अगले दिन ऋण चुकाने का वचन दिया । साहूकार ने हिदायत देकर उसे छोड़ दिया कि अगले दिन वह कर्ज चुका दे । इसके बाद वह शिकार के लिए निकला । दिन भर वह भूखा प्यासा था । वह एक तालाब के किनारे बेलवृक्ष के नीचे बैठा शिकार की टोह ले रहा था । बेलवृक्ष के नीचे एक शिवलिंग था जो बेलपत्तियो से ढंका था । शिकारी को इसका पता नही था । पड़ाव बनाते समय जो पत्तियां और टहनियाँ तोड़ी थी । वह शिवलिंग में ही गिरी । इस प्रकार शिकारी का व्रत भी हो गया और बेलपत्र भी चढ़ गया । रात्रि में एक गर्भिणी तालाब पर पानी पीने पहुँची । शिकारी ने जैसे ही उसको मारने के लिए धनुष पर तीर चढ़ाया । वह प्रार्थना करने लगी कि मै गर्भिणी हूँ ,शीघ्र ही प्रसव करुँगी ।तुम एक साथ दो जीवो की हत्या करोगें । मै अपने बच्चों को जन्म देकर तुम्हारे पास आ जाऊँगी, तब तुम मुझे मार देना । शिकारी ने उसको छोड़ दिया । कुछ देर बाद एक और मृगी उधर से गुजरी । उसने धनुष पर बाण चढ़ाया ही था कि मृगी प्रार्थना करने लगी कि मैंअपने पति से बिछड़ गयी हूँ । उनसे मिलकर मै तुम्हारे पास आ जाऊँगी । तब तुम मुझे मार देना । शिकारी की मन की स्थिति बदल रही थी ।उसने उस मृगी को भी छोड़ दिया । अपने परिवर्तित होते मन के विषय में सोच ही रहा था।तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ वहाँ पानी पीने के लिए  आयी । शिकारी तीर से उसे मारने ही वाला था कि तभी उसे उस मृगी की आवाज़ सुनायी दी । हे पारथी ! मै इन बच्चों को अपने पिता के पास छोड़कर आती हूँ ।तब आप मुझे मार देना । शिकारी हंसा कि सामने आये शिकार को मै कैसे छोड़ सकता हूँ। मृगी ने कहा जैसे तुम्हारे बच्चे भूख प्यास से तड़प रहे है वैसे ही हमारे बच्चे भी तड़प रहे है ।अतः बच्चों को उनके पिता के यहाँ छोड़कर मै वापस आ जाऊँगी । शिकारी को उस पर दया आ गयी । उसने उस मृगी को भी जाने दिया । शिकार के अभाव में शिकारी बेलपत्तो को तोड़कर नीचे फेकने लगा । जो शिवलिंग पर चढ़ता गया। सुबह होने को आयी तभी एक हस्ट पुष्टि मृग वहां आया । शिकारी ने उसे आता देख धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा ली कि इसे अवश्य मार देंगे । लेकिन मृग उससे कहने लगा कि यदि आपने मुझसे पूर्व तीन मृगियों और बच्चों को मार दिया है तो मुझे भी मारने में विलंब न कीजिये । क्योकि मै उनका पति हूँ । यदि आपने उन्हें जीवन दान दिया है तो मुझे भी जीवन दान देने की कृपा करे । कुछ समय के बाद मै यहाँ उपस्थित हो जाऊँगा ।
उपवास,रात्रिजागरण,शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक ह्रदय पिघल गया । वह अपने पुराने कर्मो को यादकर पछताने लगा । थोड़ी देर बाद ही मृग और उसका परिवार शिकार के समक्ष उपस्थित हुए ताकि  शिकारी उनका शिकार कर सके । लेकिन पशुओं की ऐसी सत्यता ,सात्विकता और प्यार देखकर उसे बहुत ग्लानि हुयी । उसके नेत्रो से आँसू की धारा बह निकलीं । उसने मृग और उसके परिवार को नही मारा । उसका ह्रदय कोमल भावना से भर गया ।
इस घटना को देवी -देवता देख रहे थे ।इन्होंने फूलों की वर्षा की । इस प्रकार शिकारी और मृग के परिवारों को मोक्ष की प्राप्ति हुयी। अतः अनजाने में भी शिव की पूजा करने से भी मनुष्य का कल्याण होता है ।

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शिव जी के मुख्य स्थल :

भारत में विभिन्न स्थानों में बारह ज्योतिर्लिंग है । जो पूजा के लिए भगवान शिव के पवित्र धार्मिक स्थल और केंद्र है । ये ज्योतिर्लिग स्वयं से ही उत्प्नन हुये है । इनका बहुत महत्व है :

1.सोमनाथ का मन्दिर- यह गुजरात के काठियावाड़ में स्थापित है ।
2.श्री शैल मल्लिकार्जुन : मद्रास के क्षण नदी के किनारे पर्वत पर स्थित है।
3.महाकाल  :उज्जैन के अवंति नगर में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग  स्थित है । जहाँ शिव जी ने दैत्यों का नाश किया था ।
4 .अंकलेश्वर शिवलिंग :मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी के तट पर स्थित है ।यहाँ पर्वत राज विंध्य की कठोर तपस्या से शिव जी प्रकट हुए थे ।
5.नागेश्वर गुजरात : द्वारिकाधाम के निकट नागेश्वर लिंग है ।
6. बैजनाथ विहार : बैजनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग है ।
7.मीमाशंकर शंकर : महाराष्ट्र की मीमा नदी के किनारे स्थापित मीमाशंकर ज्योतिर्लिंग स्थित है ।
8.त्रयम्बकेश्वर नासिक : यह महाराष्ट्र के नासिक से 25 किलोमीटर दूर है ।
9.घुमेश्वर ज्योतिर्लिंग : महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के समीप बेसल गाँव में स्थापित धुमेश्वर ज्योतिर्लिंग है ।
10.केदारनाथ हिमालय : यह हरिद्वार से 150 मील की दूरी में स्थित है ।
11. काशी विश्वनाथ : वाराणसी के काशी विश्वनाथ में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग है ।
12.रामेश्वर त्रिचनापल्ली : मद्रास के समुंद्र तट पर भगवान राम द्वारा स्थापित रामेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है ।

अनुष्ठान और पूजा :

शिवपुराण के अनुसार ,सर्वप्रथम रात्रि में भगवान भोलेनाथ का निराकार स्वरूप प्रतीक लिंग की पूजा भगवान ब्रह्मा और भगवान् विष्णु ने किया था ।इसीकारण  यह पावन दिवस महाशिवरात्रि  के नाम से जाना जाता है ।
इस दिन भक्त भगवान शिव की स्तुति और श्लोक का उच्चारण करते  है । शिव के मंदिरो में पूजा की थाली लिए भक्तगण ‘ॐ नमः शिवाय ‘ ‘जय शिवशंकर भोलेनाथ ‘और ‘महादेव की जय’ के उद् घोष और शंखनाद की ध्वनि से पूरा वातावरण भक्तमय हो जाता है ।शिव जी के पाठ में शिवपुराण,शिवपंचाक्षर,शिवस्तुति, शिवाष्टक, शिवचालीसा, शिवरुद्राष्टक आदि अनेक पाठ किये जाते है । परिवार के साथ मिलकर रुद्राभिषेक किया जाता है।

भक्तगण सूर्योदय के समय पवित्र स्थानों में स्नान करते है । शिव् जी की पांच या सात बार परिक्रमा करते है । शिवपुराण के अनुसार पूजा अर्चना में निम्न वस्तुए शामिल किया जाता है : पानी,दूध,शहद,के साथ अभिषेक करना चाहिए । बेर और बेल के पत्ते कोे शिवलिंग पर अर्पित करना चाहिये, क्योकि बेर या बेलपत्र आत्मा को शुद्ध करते है ।
सिंदूरी को शिवलिंग पर लगाते है । यह पुण्य का प्रतीक है । फल दीर्घायु और इच्छाओं का प्रतीक है ।जलती धूप धन,उपज अनाज का और दीपक ज्ञान की प्राप्ति दर्शता है । पान के पत्ते सांसारिक सुखो के साथ संतोष का आकलन करते है ।

महाशिवरात्रि में उपवास का बहुत  ही महत्व है ।शिवभक्त मंदिर में जाकर शिवलिंग का विधिपूर्वक पूजन करते है । रात्रि में जागरण करते है । व्रत में अन्न का सेवन नही किया जाता है ।शाम को व्रत खोलने से पहले पूजा की जाती है ।

चूँकि इस दिन भगवान भोलेनाथ की शादी माँ पार्वती के साथ हुयी थी ।अतः शिव भक्तो के द्वारा रात्रिकाल मे भगवान शिव की बारात निकाली जाती है । इस पावन अवसर पर शिवलिंग का विधिपूर्वक अभिषेक करने पर मनोवांछित फल मिलता है ।

भगवान शिव की महिमा अपरम्पार है । सम्पूर्ण ब्रम्हांड उनमें निहित है । वे शुध्दि का स्वरुप है । अर्धनारीश्वर का रूप भी है । मानव के साथ ही वे भूत -पिचाश,पशुओं के भी देव है। सच्चे मन से उन्हें स्मरण और चिंतन करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाये पूर्ण होती है ।

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